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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगस्त - २०१३ - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आदि की तुलना गुणस्थान के साथ निम्नवत् रूप से की जा सकती है। १. यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अब्रह्म तथा अपरिग्रह इन पंचविध मुख्य यमों के अतिरिक्त क्षमा, द्युति, दया, आर्जव, मिताहार, शौचादि की योजना द्वारा दशविध यमों की भी प्रसिद्धि दिखलाई है। जैन दर्शन के प्रमुख ग्रंथ उमास्वामिरचित तत्त्वार्थसूत्र के सातवें अध्याय में कहा गया है- 'हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्योविर्तिव्रत' अर्थात् हिंसा, अनृत, स्तेय, स्त्रीसंग, परिग्रह आदि निषिध कर्मों को न करने वाला साधक कहलाता है जिसे योगदर्शन में यम कहा जाता है। २.नियम - कर्मफल की इच्छा न करना, सकाम कर्मों से लौटाकर निष्काम कर्म में प्रेरित करने वाले शौच, संतोष, स्वाध्याय, ईश्वर-प्राणिधान, प्रसिद्ध पाँच नियम योग दर्शन में स्पष्ट किए गए हैं। तप, संतोष, आस्तिक्य, दान, ईश्वरपूजन, सिद्धान्तवाक्य-श्रवण, ह्रीं, मति, जप एवं हुत आदि दशविध नियम भी चर्चित हैं। जैन दर्शन के गुणस्थानक सिद्धआन में इनकी उपस्थिति मानी जाती है। ३. आसन · इसमें बैठते जांध के ऊपर दोनों पाद-तल रखकर, विपरीतक्रम से हाथों द्वारा अँगूठे को पकड़ने पर पद्मासन की स्थिति होती है। जांघ के बीच में दोनों टखने रखकर सीधी तरह से बैठने पर स्वस्तिक आसन की अवस्था होती है। एक जांध पर एक पाँव तथा दूसरी जांध पर दूसरा पाँव रखने से वीरासन होता है। योनिस्थान में पाँव का अग्र भाग लगाकर एक पाँव को पेदू पर दृढता से रखकर, चिबुक को हृदय पर स्थिर करके, स्थाणु को संयमित करके भूमध्य भाग में दृष्टि निश्चल करके सिद्धासन होता है। यह आसन मोक्ष-द्वार को खोलने वाला है। ४. प्राणायाम - आसन की स्थिरता के अनन्तर प्राणायाम का विधान है। प्राण और अपान का एक्य ही प्राणायाम है तथा वही हठयोग भी है। प्राणायाम हठयोग के बीज के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। प्राणायाम चतुर्विध है। (अ) बाह्यवृत्ति • रेचक प्रक्रिया द्वारा उदर-स्थितवायु की बाह्य-गति को बाहर ही रोकना बाह्यवृत्ति प्राणायाम है। (ब) अभ्यंतरवृत्ति • पूरण व्यापार द्वारा भीतर की ओर जाने वाली वायु को भीतर ही रोक लेना अभ्यंतरवृत्ति प्राणायाम है। (स) स्तम्भ-वृत्ति - रेचक ओर पूरक प्रयत्न के बिना, अवरोध प्रयत्न द्वारा एक ही बार बाह्य एवं अभ्यंतर के विचार के बिना ही गति को रोक लेना For Private and Personal Use Only
SR No.525281
Book TitleShrutsagar Ank 2013 08 031
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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