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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय भारत पर्वो-त्योहारों का देश है। वैसे तो प्रत्येक मास में कोई न कोई पर्व-त्योहार आता ही है, किन्तु वर्षा ऋतु से वसन्त ऋतु तक पर्वो-त्योहारों की बहुलता रहती है। भारत की भूमि सर्वधर्म समभाव के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ सभी धर्मों-सम्प्रदायों में अनेक पर्व-त्योहार समय-समय पर मनाये जाते हैं। वैसे देखा जाए तो पर्व और त्योहार में भिन्नता है। पर्व जहाँ उपवास, साधना, आराधना के रूप में मनाया जाता है वहीं त्योहारों में समयानुकूल वस्त्र परिधान पहनने, मिलने-जुलने, खाने-पीने को प्रधानता मिलती है। इन सबमें एक खास विशेषता यह है कि जैनधर्म में मनाये जाने वाले सभी पर्व-त्योहार उपासना-साधना-आराधना से जुड़े हुए हैं। जैनधर्म श्रमण परम्परा का धर्म है। दूसरे शब्दों में यह निवृत्तिमार्गी है। अन्य धर्मों में जहाँ पर्व-त्योहरों में खाने-पहनने को प्रधानता मिलती है, वहीं जैनधर्म में पर्व-त्योहारों में उपवास, साधना-आराधना को प्रधानता मिलती है। यही कारण है कि जैनधर्म के सभी पर्व-त्योहार उपासना-साधना-आराधना के पर्व होते हैं। पर्वो की शृंखला में कार्तिक चौमासी चतुर्दशी जाने के कुछ ही दिनों के बाद मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अर्थात् मौन एकादशी का महापर्व आता है। जैनधर्म में इस महान पर्व का विशिष्ट स्थान है। यह मंगलमय दिवस इतना पवित्र और श्रेष्ठतम है कि उस दिन किया हआ उपवास एक सौ पचास उपवास का फल देने वाला होता है। इस पर्व के साथ जड़ी हुई सबसे बड़ी बात यह है कि इस दिन तीनों काल अर्थात भूत, वर्तमान एवं भविष्य की चौबीसी के तीर्थंकरों के एक सौ पचास कल्याणक हुए हैं । इसलिये यह महान पर्व परम पवित्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का माहात्म्य भी अनोखी घटना के साथ जुड़ा हुआ है। वर्तमान चौबीसी के बाईसवें तीर्थकर भगवान श्री नेमिनाथ प्रभु एक बार द्वारिका नगरी में पधारे, देवताओं ने समवसरण की रचना की। द्वारिका नगरी के महाराजा श्रीकृष्ण परमात्मा को वन्दन करने पधारे। परमात्मा ने भव्य जीवों को प्रतिबोध करने के लिये वैराग्यमय देशना दी। देशना पूर्ण होने के पश्चात् श्रीकृष्ण महाराजा ने परमात्मा से प्रश्न किया- हे भगवन्! वर्ष के तीन सौ पैंसठ दिनों में ऐसा कौनसा दिन है कि जिसमें थोड़ी सी साधना आदि भी करने पर उसका फल अधिक मिले? परमात्मा नेमिनाथ प्रभु ने कहा- हे कृष्ण ! मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का दिन सर्व दिनों में श्रेष्ठ दिन है। क्योंकि इस दिन तीनों काल के चौबीसी के तीर्थंकरों के एक सौ पचास कल्याणक हुए हैं, इस कारण इस तिथि को उपवास करने से एक सौ पचास उपवास का फल मिलता है। विधि पूर्वक इस तप की आराधना की जाए तो इसका फल अवर्णनीय है। यह तप ग्यारह वर्ष तक किया जाता है। इस दिन मौन रखा जाता है, इसलिये इस महापर्व को मौन एकादशी भी कहा जाता है। श्रीकृष्ण महाराजा पुनः परमात्मा से प्रश्न करते हैं कि हे प्रभु! क्या पहले कोई भाग्यशाली आत्मा ने इस महापर्व की आराधना की है? अगर की है तो इसका फल क्या मिला है? तब परमात्मा ने इस महापर्व की आराधना करने वाले सुव्रत नामक सेठ की कथा कही, जिसकी कथा प्रायः हम सभी जानते हैं। मौन एकादशी का महापर्व हमारे जीवन में श्रेष्ठतम पर्व के रूप में मिला है, इसकी साधना-आराधना कर हम अपने मानव जीवन को सफल बनाएँ, भविष्य सुधारें और आत्मा को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करें यही शुभकामना। - अनुक्रम लेख ૧. મૌન એકાદશીનો અપૂર્વ પ્રભાવ २. उवसग्गहरस्तोत्रसमग्रपादपूर्तिरूपं समस्या-स्तोत्रम् 3. धनी रक्षा आहे ૪. અહિચ્છત્રા ૫. શંખેશ્વર તીર્થમાં પ્રાચીન પડદા ६. ग्रंथ समीक्षा ૫. જ્ઞાનમંદિર : સંક્ષિપ્ત અહેવાલ ડિસેમ્બર ૨૦૧૨ ७. समाचार सार लेखक મુનિ શ્રી સુશીલવિજય पं. लक्ष्मीकल्लोल गणि સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ નાથાલાલ છ. શાહ મુનિ શ્રી સુશીલવિજય डॉ. हेमन्त कुमार डॉ. हेमन्त कुमार For Private and Personal Use Only
SR No.525274
Book TitleShrutsagar Ank 2013 01 024
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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