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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
हमीर, शौरसेनी, बाली, तिब्बति, व्यंग, बंग, ब्राह्मी, वजयार्ध, पद्म, वैदर्भ, वैशाली, सौराष्ट्र, खरोष्ट्री, निरोष्ट्र, अपभ्रंश, पैशाचिक, रक्ताक्षर, अरिष्ट, अर्धमागधी आदि. इस प्रकार आने वाली भाषा व लिपियों को एक ही अंकलिपि में बांधकर उन सम्पूर्ण भाषाओं को इस कोष्टक रूप बंधाक्षर के अन्तर्गत समाविष्ट करके सभी कर्माटक के अनुराशि में मिश्रित कर छोड़ दिया है.
__ आज अनेक मुनि-तपस्वी-चिंतक-विद्वान इस महान ग्रंथ को पढने की शैली विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. यदि सम्पूर्ण ग्रंथ को पढने की कला विकसित हो गई तो आज जो विज्ञान अनेक प्रकार की शोध-खोज में लगा है उसमें सहायक सिद्ध होगा.
४६. श्राद्धविधि प्रकरण - आ. रत्नशेखरसूरिजी कृत इस ग्रन्थ में श्रावक जीवन हेतु अत्यन्त उपयोगी मार्गदर्शन किया गया है. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में छाया, मारुगुर्जर में टबार्थ तथा गुजराती व हिन्दी में कई अनुवाद आदि उपलब्ध हैं.
४७. वास्तुसार प्रकरण - ठक्कुर फेरू द्वारा रचित इस ग्रन्थ में देवालय, प्रासाद आदि के निर्माण से संबंधित शास्त्रीय निर्देश दिए गए हैं. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर गुजराती व हिन्दी में अनुवाद आदि उपलब्ध हैं.
४८. रत्नपरीक्षा - ठक्कुर फेरू कृत यह ग्रन्थ १४ सदी की रचना है. इस के अंदर रत्नो का परिचय तथा उससे संबंधित अन्य उपयोगी बातों का वर्णन किया गया है. यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा हिन्दी में अनुवाद भी उपलब्ध है.
४९. बारभावना - उपाध्याय विनयविजयजी कृत शान्त सुधारस ग्रन्थ में वर्णित बार भावना मैत्री आदि चार भावनाओ का गेयात्मक सुंदर उपदेश दिया गया है. अध्यात्म जीवन हेतु इससे उपयोगी मार्गदर्शन मिलता है. इस ग्रन्थ पर गुजराती भाषा में श्री मोतीचंद गिरधरलाल कापडिया का सरल व ग्राह्य विवेचन भी उपलब्ध है.
५०. द्रव्यगुणपर्याय रास - उपाध्याय यशोविजयजी कत द्रव्यानयोग का देशी भाषाबद्ध अद्वितीय ग्रंथराज है. जैन तत्वदर्शन को जानने के लिए यह अद्वितीय ग्रंथ है. यह ग्रन्थ मारुगुर्जर भाषा में है तथा इसके ऊपर मारुगूर्जर में टबार्थ व गुजराती में अनुवाद भी उपलब्ध है. वर्तमान में इस आकर ग्रन्थ पर गणिवर्य श्री यशोविजयजी द्वारा संस्कृत में प्रौढ़ टीका का निर्माण हो रहा है.
५१. ओसवाल जाति का इतिहास - ओसवालो की उत्पति के विषय में वैविध्य सभर माहितीयों का खजाना इसमें दिया गया है. यह ग्रन्थ हिन्दी भाषा में है.
५२. बृहत्संग्रहणी - आचार्य चंद्रसूरिजी कृत इस ग्रन्थ में जैनभूगोल विषयक संपूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त होता है. जैन शाश्वत पदार्थों का यह अद्भुत ग्रन्थ है. यह मूल प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में टीका, अवचूरि, छाया तथा गुजराती व हिन्दी में कई अनुवाद आदि उपलब्ध हैं.
५३. क्षेत्रसमास - जैन भूगोल के पदार्थों का सुंदर वर्णन व तद्विषयक अनेक पदार्थों का वर्णन करने वाला यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है तथा इसके ऊपर संस्कृत में छाया और गुजराती में अनुवाद भी उपलब्ध हैं.
५४. जैन तीर्थों का परिचय - भारत के प्राचीन-अर्वाचीन जैन तीर्थों की संक्षिप्त जानकारी देनेवाला हिन्दी भाषा में दिवाकर प्रकाशन, आगरा से प्रकाशित यह ग्रन्थ सामान्य जैन गृहस्थों के लिए बहुत उपयोगी है.
५५. जैन तीर्थ दर्शन भाग १-३ - इस ग्रन्थ में भारतवर्ष के सभी राज्यों के महत्त्वपूर्ण जैन तीर्थों का सचित्र वर्णन किया गया है तथा यह सामान्य जैन गृहस्थों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होता है. हिन्दी में यह ग्रन्थ जैन संघ मद्रास से प्रकाशित हुआ है.
५६. आचार्य श्रीकैलाससागरसूरीश्वरजीनी वार्ताओ-पु. आचार्य श्री कैलाससागरसरि द्वारा रचित यह ग्रंथ वार्त्तारूपी कुंभ से धर्मरूपी अमृत का पान करवाता है. इस ग्रंथ में गुजराती भाषा में धर्मकथानुयोग की प्रेरक कथाओं का संकलन किया गया है.
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