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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
जैन साहित्य सूचि का बहुआयामी प्रकाशन कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची
मनोज र. जैन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर - कोबा ज्ञान भंडार प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का विशाल ज्ञानसागर है. जैन हस्तलिखित साहित्य का बेशुमार खजाना कहा जा सकता है. राष्ट्रसंत पूज्य आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की सत्प्रेरणा से संस्थापित इस ज्ञानतीर्थ में प्रत्येक वर्ष हजारों दर्शनार्थी आते हैं. संशोधकों, विद्वानों, अध्ययन अध्यापन कर रहे पूज्य साधु साध्वीजी भगवन्त तथा सामान्य जिज्ञासुओं के लिए यह स्थान आशीर्वाद रूप सिद्ध हआ है. वाचकों को अपेक्षित ग्रंथ की अत्यल्प माहिती के आधार पर ही यहाँ कम्प्युटर के विशेष प्रोग्राम के द्वारा ढेर सारी इच्छित सामग्री मिल जाती है, वह भी कुछ ही समय में, आनेवाले जिज्ञास को संतोष देकर सन्मानित किया जाना इस ग्रंथालय की सब से बड़ी विशेषता कही जाती है.
शास्त्रों का संरक्षण और संवर्धन करने का तरीका भी इस भंडार की अपनी स्वतंत्र शैली का है. साथ साथ जैन और भारतीय संस्कृति की धरोहर समान कलाकृतियों का संग्रहालय भी अद्भुत है. गुजरात की राजधानी के समीपस्थ होने के कारण यहाँ दर्शनार्थियों की हमेशा भीड़भाड़ रहती है. कई महानुभावों के हृदयोदगार निकलते हैं कि यहाँ नही आये होते तो शायद हमारी यात्रा अपूर्ण रह जाती, जीवन में कुछ नया देखने का, अनुभव करने का और चिंतन करने का अवसर देनेवाले इस ज्ञानमंदिर में संग्रहित जैन व जैनतर हस्तलिखित शास्त्रों की लगभग दो लाख प्रतियाँ उपलब्ध हैं. तथा मुद्रित प्रत और पुस्तकें लगभग एक लाख चालीस हजार के आसपास संग्रहित है. इनमें से हस्तलिखित ग्रंथों का सूचीकरण कार्य पिछले दस वर्षों से चल रहा हैं. अत्यन्त श्रमसाध्य व दुरुह इस कार्य को यहीं पर विकसित कम्प्युटर प्रोग्राम के माध्यम से पंडित टीम द्वारा संपादित किया जा रहा है. विगत वर्षों में कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची के १-३ खंडों का प्रकाशन किया गया था. गत वर्ष ८ नवम्बर, २००६ को चौथे व पाँचवें खंड को प्रकाशित कर साधु साध्वीजी, प्रमुख जैन संघ और विद्वानों के कर कमलों में प्रस्तुत किया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची की विशेषताएँ
ग्रन्थसूची के प्रथम खंड में इस ज्ञानमंदिर में संग्रहीत जैन हस्तप्रत सं. १ से ५५८५, दूसरे खंड में ५५८६ से ९३१५, तीसरे खंड में ९३१६ से १३२५८, चौथे खंड में १३८२६ से १७३०० और पाँचवें खंड में १७३०१ से २०९९९ तक की प्रतियों का समावेश हुआ है. इन खंडों में विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानभंडार-आगरा की अधिकतर प्रतों की सूची दे दी गई है.. पांचों खंडों में समाविष्ट १५६०६ जैन हस्तप्रतों में प्राकृत एवं संस्कृत भाषा की ३६६९ रचनाएँ तथा मारूगुर्जरादि भाषा की कृतियाँ यहां के कम्प्यूटर आधारित सूचनाओं के अनुसार संकलित की गई है. आगे के खंड - का कार्य संपादित हो रहा है..
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची के नाम से प्रकाशित इस सूची के आगे के करीब खंडों का कार्य अथक प्रयत्न पूर्वक जारी है. यह सूची एक तरह से प्राचीन जैन साहित्य के इन्साइक्लोपिडीया के रूप में पहचान प्राप्त करेगी. जैन व जैनेतर साहित्य को उजागर करने में इसे एक सफल प्रयास कहा जा सकता है. बृहत सूची के इन खंडों में अनेक प्रकार की संशोधनपूर्ण विशेषताएँ संयोजित की गई है जो आज तक की सभी सूचियों की परंपरा में एक गौरवपूर्ण विकास कदम है.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि चित्कोश में संग्रहित हस्तलिखित शास्त्र ग्रंथों में से जैन साहित्य की प्रतियों को इस सूची के प्रारंभिक खंडों में वरीयता दी गई है. यहाँ के भंडार में जैन साहित्य की जितनी हस्तप्रतें हैं, उन सभी की विस्तृत माहिती इस सूचीपत्र में क्रमशः समाविष्ट की जा रही है. इस में अत्यन्त प्रभावी कम्प्युटर आधारित तकनीक का उपयोग किया गया है, जिससे वाचक सरलता से अपने विषय की संपूर्ण माहिती प्राप्त कर सकते हैं. थोड़े समय में इच्छित सामग्री