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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक राजसरा, मोतीया, चोधरी, पुनमिया, सरा, उजोत इस तरह १७ शाखाएँ विरहट गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ८. मूलगोत्र श्री श्रीमाल- श्री श्रीमाल, संघवी लघुसंघवी, निलडिया, कोटडिया, झाबांणी, नाहरलांणी, केसरिया, सोनी, खोपर, खजानची, दानेसरा, उद्घावत, अटकलीया, धाकडिया, भीन्नमाजा, देवड, माडलीया, कोटी, चंडालेचा, साचोरा, करवा इस तरह २२ शाखाएँ श्रीमाल गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ९. मूलगोत्र श्रेष्ठि- श्रेष्ठि, सिंहावत, भाला, रावत, वैद, मुत्ता, पटवा, सेवडिया, चोधरी, थानावट, चीतोडा, जोधावत, कोटारी, बोत्थाणी, संघवी, पोपावत, ठाकुरोत, बाखेटा, विजोत, देवराजोत, गुंदीया, बालोटा, नागोरी, सेखांणी, लाखांणी, भुरा, गांधी, मेडतिया, पातावत्, शूरमा इस तरह ३० शाखाएँ श्रेष्ठि गोत्र से निकली हैं वे सभी भाई हैं. १०. मूलगोत्र संचेति- संचेति (सुचति/ साचेती), ढेलडिया, धमाणि, मोतिया, बिंबा, मालोत्, लालोत्, चौधरी, पालाणि लघुसंचेति, मंत्रि, हुकमिया, कजारा, हीपा, गांधी, बेगणिया, कोठारी, मालखा, छाछा, चितोडिया, इसराणि, सोनी, मरुवा, घरघटा, उचेता, लघुचोधरी, चोसरीया, बापावत्, संघवी, मुरगीपाल, कीलोला, खरभंडारी, भोजावत्, काटी जाटा, तेजाणी, सहजाणि, सेणा मंदिरवाला, मालतिया, भोपावत्, गुणीया इस तरह ४४ शाखाएँ संचेति गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. ११. मूलगोत्र आदित्यनाग- आदित्यनाग, चोरडिया, सोढाणि, संघवी, उडक मसाणिया, मिणियार, कोटारी, पारख, पारखों से भावसरा, संघवी ढेलडिया, जसाणि, मोल्हाणि, नन्नडक, तेजाणि, रुपावत्, चौधरी, गुलेच्छा, गुलेच्छों से दौलताणी, नागाणी, संघवी, नापडा, काजाणि हुला, सेहजावत, नागडा, चित्तोडा, दातारा, मीनागरा, सावसुखा सावसुखों से मीनारा लोला, बाजाणि, केसरिया, बला, कोटारी, और नांदेचा ये सभी आपस में भाई हैं. १२. मूलगोत्र भटनेराचोधरी- भटनेराचोधरियों से कुंपावत्, भंडारी, जीमणिया, चंदावत्, सांभरीया, कानुंगा, गदईया गवइयों से गेहलोत, लुगावत, रणशोभा, बालोत्, संघवी, नोपत्ता बुचा बुचों से सोनारा, भंडलीया, करमोत्, दालीया, रत्नपुरा, फिर चोरडियों से नाबरिया, सराफ, कामाणि, दुद्धोणि, सीपांणि, आसाणि, सहलोत्, लघु सोढाणी, देदाणि, रामपुरिया, लघुपारख, नागोरी, पाटणीया, छाडोत्, ममइया, बोहरा, खजानची, सोनी, हाडेरा, दफ्तरी, चोधरी, तोलावत्, राब, जौहरी, गलाणि इस तरह ८५ शाखाएँ इस गोत्र से निकली हैं, वे सभी भाई हैं. १३. मूलगोत्र भूरि-भूरि, भटेवरा, उडक, सिंधी, चोधरी, हिरणा, मच्छा, बोकडिया, बलोटा, बोसूदीया, पीतलीया, सिंहावत्, जालोत्, दोसाखा, लाडवा, हलदीया, नांचाणि, मुरदा, कोठारी, पाटोतीया इस तरह २० शाखाएँ भूरि गोत्र से निकलीं वह सभी भाई हैं. १४. मूलगोत्र भद्र- भद्र, समदडिया, हिंगल, जोगड, गिंम, खपाटीया चवहेरा, बालडा, नामाणि, भमराणि, देलडिया, संघी, सादावत्, भांडावत्, चतुर, कोटारी, लघु समदडिया, लघु हिंगड, सांढा, चोधरी, भाटी, सुरपुरीया, पाटणिया, नांनेचा, गोगड, कुलधरा, रामाणि नाथाणि, नाथवत, फूलगरा इस तरह २६ शाखाएँ भद्रगोत्र से निकली हैं, वे सब भाई हैं. १५. मूलगोत्र चिंचट- चिंचट, देसरडा, संघवी, ठाकुरा, गोसलांणि, खीमसरा, लघुचिंचट, पाचोरा, पुर्विया, निसाणिया, नौपोला, कोठारी, तारावाल, लाडलखा, शाहा, आकतरा, पोसालिया, पूजारा, वनावत् इस तरह १९ शाखाएँ चिंचटगोत्र से निकली हैं, अतः वे सभी भाई हैं. १६. मूल गोत्र कुमट- कुमट काजलीया, धनंतरि, सुधा, जगावत, संघवी, पुलगीया, कठोरीया, कापुरीत, संभरिया, चोक्खा, सोनीगरा, लाहोर, लाखाणी, मरवाणि, मोरचीया, छालीया, मालोत्, लघुकुंमट, नागोरी इस तरह १६ शाखाएँ कुमटगोत्र से निकली हैं, अतः वे सभी भाई हैं. १७. मूलगोत्र डिंडू- डिंडू, राजोत्, सोसलाणि, धापा धीरोत, खंडिया, योद्धा, भाटिया, भंडारी समदरिया, सिंधुडा, जालन, कोचर, दाखा, भीमावत्, पालणिया, सिखरिया, वांका, वडवडा बादलीया, कुंगा इस तरह २१ शाखाएँ डिंडूगोत्र से निकली हैं, वे सब भाई हैं. 133
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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