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श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ दिन की गई थी. आचार्यश्री की यह इच्छा थी कि यहाँ पर धर्म, आराधना और ज्ञान-साधना की कोई एकाध प्रवृत्ति ही नहीं वरन् अनेकविध ज्ञान और धर्म-प्रवृत्तियों का महासंगम हो. एतदर्थ आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की महान भावनारूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का खास तौर पर निर्माण किया गया.
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ आज पाँच नामों से जुड़कर निरन्तर प्रगति और प्रसिद्धि के शिखर सर कर रहा है. (१) प्रतिवर्ष २२ मई को दो बजकर सात मिनट पर महावीरालय में परमात्मा महावीर स्वामी के ललाट पर सूर्यकिरणों से बनने वाला देदीप्यमान तिलक, (२) आचार्य श्री कैलाससागरसूरि म.सा. की पावन स्मृतिरूप गुरुमन्दिर. (३) प.पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की पावन प्रेरणा (४) अपने आप में अनुपम आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तथा पू. आचार्यश्री के शुभाशीष तथा मार्गदर्शन में विकसित बोरीज तीर्थ स्थित योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी की साधनास्थली में पुनरुद्धार के बाद नवनिर्मित भव्य १०८ फीट ऊँचा वर्धमान महावीर प्रभु का महालय यानी विश्व मैत्री धाम. इनमें से किसी का भी नाम लेने पर स्वतः ये पाँच स्वरूप उभर कर आते हैं. ये पाँचों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. वर्तमान में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र अनेकविध प्रवृत्तियों में अपनी निम्नलिखित शाखाओं प्रशाखाओं के सत्प्रयासों के साथ धर्मशासन की सेवा में तत्पर है.
(१) महावीरालय : हृदय में अलौकिक धर्मोल्लास जगाने वाला चरम तीर्थकर श्री महावीरस्वामी का शिल्पकला युक्त भव्य प्रासाद 'महावीरालय' दर्शनीय है. प्रथम तल पर गर्भगृह में मूलनायक महावीरस्वामी
आदि १३ प्रतिमाओं के दर्शन अलग-अलग देरियों में होते हैं तथा भूमि तल पर आदीश्वर भगवान की भव्य प्रतिमा, माणिभद्रवीर तथा भगवती पद्मावती सहित पांच प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं. सभी प्रतिमाएँ इतनी मोहक एवं चुम्बकीय आकर्षण रखती हैं कि लगता है सामने ही बैठे रहें.
मंदिर को परंपरागत शैली में शिल्पांकनों द्वारा रोचक पद्धति से अलंकृत किया गया है, जिससे सीढियों से लेकर शिखर के गुंबज तक तथा रंगमंडप से गर्भगृह का चप्पा-चप्पा जैन शिल्प कला को आधुनिक युग में पुनः जागृत करता दृष्टिगोचर होता है. द्वारों पर उत्कीर्ण भगवान महावीर देव के प्रसंग २४ यक्ष, २४ यक्षिणियों, १६ महाविद्याओं, विविध स्वरूपों में अप्सरा, देव, किन्नर, पश-पक्षी सहित वेल-वल्लरी आदि इस मंदिर को जैन शिल्प एवं स्थापत्य के क्षेत्र में एक अप्रतिम उदाहरण के रूप में सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते हैं.
इस महावीरालय की विशिष्टता यह है कि आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. के अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष २२ मई को दुपहर, २ बजकर ७ मिनट पर महावीरालय के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के ललाट को सूर्यतिलक से देदीप्यमान करे ऐसी अनुपम एवं अद्वितीय व्यवस्था की गई है. प्रति वर्ष इस आह्लादक घटना का दर्शन बड़ी संख्या में जनमेदनी भावविभोर होकर करती है.
(२) आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति मंदिर (गुरु मंदिर) : पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव प्रशान्तमूर्ति श्रीमत कैलाससागरसरीश्वरजी म. के पुण्य देह के अन्तिम संस्कार स्थल पर पूज्यश्री की पण्य-स्मति में संगमरमर का कलात्मक गुरु मंदिर निर्मित किया गया है. स्फटिक रत्न से निर्मित अनन्तलब्धि निधान श्री गौतमस्वामीजी की मनोहर मूर्ति तथा स्फटिक से ही निर्मित गुरु चरण-पादुका वास्तव में दर्शनीय हैं. इस गुरु मंदिर में दीवारों पर संगमरमर की आठ जालियों में दोनों ओर श्रीगुरुचरणपादुका तथा गुरु श्री गौतमस्वामी के जीवन की विविध घटनाओं का तादृश रूपांकन करने के सफल प्रयास किये गये हैं. इस स्थान पर फर्श एवं गर्भगृह की चौकी आदि पर कीमती पत्थरों द्वारा बेल-बूटों की सुंदर पच्चीकारी का कार्य किया गया है. यहाँ पर आचार्यश्री के जीवन-प्रसंगों को स्वर्णाक्षरों से अंकित करने की भी योजना है.
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