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वाराणसी की नैग्मेष मृण प्रतिमाएं : एक अध्ययन : 39 अजकर्ण की नैग्मेष एवं नैगमेषी की मृण्प्रतिमाएँ प्राप्त हैं। यह प्रस्तुत करता है कि परम्परागत अजशीर्ष, ‘छगाना' देव, सामान्य मानव मुख (परन्तु पशुकर्ण) के रूप में परिवर्तित हो गया एवं यह घटना निश्चय ही इसके रहस्यमय प्रतिमा विज्ञान से पूर्व ही स्थान ले चुकी होगी (नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८ : ८७)। मथुरा के उत्तर कुषाण काल में अनेकों स्त्री नैग्मेषी प्रस्तर प्रतिमाएँ भी प्राप्त हैं (अग्रवाल पी०के०, १९६९; फलक II, क)। इन मृण प्रतिमाओं के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि अजमुख नैग्मेष का निर्माण जहाँ कुषाणकाल में हुआ वहीं गुप्तकाल तक आते-आते नैग्मेष में मानव मुख का अंकन होने लगा। सन्दर्भ
अग्रवाल वी०एस०, १९८५. टेराकोटा फिगरिन्स ऑफ अहिच्छत्रा, पृथ्वी प्रकाशन, वाराणसी। नारायन, ए०के० एवं पी०के० अग्रवाल, १९७८, एक्सक्वेशन्स एट राजघाट (१९५७-५८, १९६०-६५): टेराकोटा ह्यूमन फिगरिन्स, पार्टIV, डिपार्टमेण्ट
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