SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया : अथ कुमुदिन्या भणितमेवं एतदिति नास्ति सन्देहः । तस्मात् सखि ! त्वमपि एतत् चित्रं लेखितुं समभ्यस्य ।। २४६ ।। गुजराती अनुवाद : ते सांभली कुमुदिनी बोली, 'हा ते प्रमाणे छे. एमां कोई शंका नथी, माटे हे सखी । तुं पण आ प्रमाणे चित्र दोवा प्रयत्न कर. हिन्दी अनुवाद : यह सुनकर कुमुदिनी बोली, 'हाँ उसके ही मुताबिक है, इसमें कोई शंका नहीं है।' इसलिए हे सखी! तूं भी इसी प्रकार चित्र बनाने का प्रयत्न करो। गाहा : अप्पे पडं एयं प्रियंवए! जेण चित्तमब्भसइ । तुह भगिणी, अह तीए समप्पिओ कुमुइणीइ पडो ।। २४७ ।। संस्कृत छाया : अर्पय पटमेतत् प्रियंवदे ! येन चित्रमभ्यस्यति । तव भगिनी, अथ तया समर्पितः कुमुदिन्यै पटः ।। २४७ ।। गुजराती अनुवाद : हे प्रियंवदे! आ चित्रपट एने आपी दे, जेथी चित्र दोरवानो अभ्यास करे, त्यारे तेणी चित्रपट कुमुदिनी ने आप्यो. हिन्दी अनुवाद : हे प्रियंवदे! यह चित्रपट इन्हें दे दो जिससे यह चित्र बनाने का अभ्यास करें। तब उसने कुमुदुनी को चित्रपट दिया । गाहा : संभासिउ ताहिं पियंवया सा तओ ममं उप्पइया नहग्गे । सहीहि जुत्ता बहु- केलियाहिं अहंपि पत्ता निय-मंदिरम्मि ।। २४८ । । संस्कृत छाया : सम्भाष्य तदा प्रियंवदा सा ततो मामुत्पतिता नभोऽग्रे । सखीभिर्युक्ता बहुकेलिकाभिरहमपि प्राप्ता निजमन्दिरे ।। २४८ ।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy