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गाहा :
तहवि हु लहामि केणवि हंदि ! उवाएण भावमेईए । इय चिंतिय आणत्ता निय- चेडी हंसिया नाम ।। १६३ । । संस्कृत छाया :
तथाऽपि खलु लभे केनाऽपि हन्दि ! उपायेन भावमेतस्याः । इति चिन्तयित्वाऽऽज्ञप्ता निजचेटी हंसिकानाम्नी ।। १६३ । । गुजराती अनुवाद :
एम छतां पण हुं कोई पण उपाय वड़े एणीना मनोगत भाव जाणु एमविचारी कमलावतीए हंसिका नाम नी पोतानी दासी ने आज्ञा करी. हिन्दी अनुवाद :
फिर भी मैं किसी न किसी उपाय से उसके मनोगत भाव को जानूं, ऐसा विचार कर कमलावती ने हंसिका नाम की अपनी दासी को आज्ञा दी कि ...
गाहा :
सुरसुंदरी उव्वेव कारणं लहसु हंसिए! कहवि ।
तुज्झ समाण - वयाए साहिस्सइ हियय - सब्भावं । । १६४ । ।
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संस्कृत छाया :
सुरसुन्दर्या उद्वेगकारणं लभस्व हंसिके ! कथमपि ।
तव समानवयसः कथयिष्यति हृदयसद्भावम् । । १६४ । ।
गुजराती अनुवाद :
हे हंसिका ! गमे ते करी ने सुरसुंदरीना उद्वेगनुं कारण तुं जाणी ले, तारा समानवयनी छे. तेथी हृदयनी वात अवश्य करशे.
हिन्दी अनुवाद :
हे हंसिका! किसी भी प्रकार से तुम सुरसुन्दरी के उद्वेग के कारणों का पता लगाओ। वह तुम्हारी हमउम्र है इसलिए तुमसे वह अपने दिल की बात अवश्य कहेगी।
गाहा :
जं आणवेसि सामिणि! इय भणिउं हंसिया गया झति । एगंत-ट्ठिय- सुरसुंदरीए पासम्मि अल्लीणा ।। १६५ ।।