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________________ संस्कृत छाया : मा भद्रे ! कुरु भयं स्तोकमपि, खलु जनकनिर्विशेषोऽहम् । काऽसि त्वं ? कुतो वेह पतिता ? मम कथय ।।१२१।। गुजराती अनुवाद : हे भद्रे! तुं जरापण भय न राख, हुं तारा पिता समान छु. तुं कोण छे? अहींया तुं क्याथी पडी? ते मने कहे? हिन्दी अनुवाद : हे बेटी! तू जरा भी भयभीत न हो, मैं तुम्हारे पिता समान हूँ। तुम कौन हो? और यहाँ कैसे गिर पड़ी, वह मुझे बताओ। गाहा : अविय। सग्गाओ निवडिया किं साव-प्पहया सुरंगणा तं सि । किं वावि भट्ठ-विज्जा विज्जाहर-बालिया सुयणु!? ।।१२२।। संस्कृत छाया : अपि च । स्वर्गाद् निपतिता किं शापाहता सुराङ्गना त्वमसि । किं वाऽपि प्रष्टविद्या विद्याधरबालिका सुतनो! ? ||१२२।। गुजराती अनुवाद : . वळी हे सुतनु! तुं स्वर्गलोकमाथी पड़ी के श्रापथी हणायेली तुं देवांगना छ? के विद्याथी भ्रष्ट थयेली कोइ विद्याधर बाळा छे. हिन्दी अनुवाद : हे सुतनु! तू स्वर्गलोक से आई हो या शाप से शापित कोई देवांगना हो, या विद्या से भ्रष्ट हुई किसी विद्याधर को बेटी हो। गाहा : तुह-रूव-दंसणुप्पन्न-हरण-बुद्धिस्स नह-पयट्टस्स । विज्जाहरस्स कस्सवि किंवा हत्थाओ पन्भट्ठा? ।।१२३।। संस्कृत छाया : त्वद्रूपदर्शनोत्पन्नहरणबुद्धे-नभःप्रवृत्तस्य । विद्याधरस्य कस्याऽपि किं वा हस्तात् प्रप्रष्टा ? ।।१२३।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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