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________________ ...: 29 श्रमण परम्परा समन्वित भारतीय परम्परा एवं कला में नारी शिक्षा वर्णन मिलता है। साथ ही एक रोचक तथ्य यह भी है कि तप कर रहे सिद्धार्थ गौतम को बोधगया के ग्राम्य बाला (सुजाता) ने एक कटोरी खीर खिलाई थी और उसके बाद ही गौतम ने बुद्धत्व प्राप्त कर एक नये क्रान्तिकारी धार्मिक युग की शुरुआत की थी। ११ खुद्दक निकाय की 'थेरी गाथा', जिसमें भिक्षुणियों की कथा का उल्लेख हुआ है, के अनुसार ५० भिक्षुणियों में से ३२ अविवाहित और १८ विवाहित थीं जो ब्रह्मचर्य का जीवन जी रही थीं साथ ही धर्म और दर्शन का औपचारिक एवं व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। १२ थेरी गाथा में आये उल्लेख से स्पष्ट है कि बुद्ध के काल में स्त्रियाँ अपनी विद्वता, निःस्पृहता तथा अन्तः सन्तुष्टि से युक्त थीं। स्वयं बुद्ध स्त्रियों की निर्वाण प्राप्ति की योग्यता से आश्वस्त थे और साथ ही साथ कुछ को तो वे पुरुषों से भी अधिक योग्य मानते थे। १३ बुद्ध प्रारम्भ में स्त्रियों को संघ - दीक्षा के पक्ष में नहीं थे। सम्भवतः यही कारण था कि उन्होंने कपिलवस्तु में गौतमी को भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था। पर आनन्द के दलील पर वैशाली में बुद्ध ने प्रजापति गौतमी सहित अन्य स्त्रियों को आठ शर्तों के साथ संघ में दीक्षा की अनुमति प्रदान की, इसके अतिरिक्त बुद्ध ने स्त्रियों के संघ में प्रवेश के कारण सद्धर्म के अल्पायु होने की घोषणा की। १४ प्रारम्भ में भिक्षुभिक्षुणियों में पर्याप्त सान्निध्य होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। परन्तु कालान्तर में लोकापवाद एवं सान्निध्यजनित दुष्कृत्यों के कारण संघ में स्त्री-पुरुष में भेद के दर्शन होते हैं। इसके बाद भी स्त्रियों के भिक्षुणी रूप में सुमना, खेमा जैसी राजपरिवार की स्त्रियों ने संघ में दीक्षा प्राप्त की, वहीं अड्ढकाशी, अम्बपाली जैसी सामान्य एवं गणिकाएँ भी दीक्षा प्राप्त करने में सफल रहीं। परिणामस्वरूप कई भिक्षुणियों को श्रमणत्व के सर्वोत्म फल 'अर्हत्व' प्राप्त करने का उल्लेख प्राप्त होता है, इनमें खेमा TM भिक्षुणी की अपनी विद्वता के कारण प्रसिद्धि सर्वविदित है । १५ यह सभी उल्लेख बौद्ध धर्म में नारी सम्मान और शिक्षा की ओर संकेत करते हैं। कालान्तर में बौद्ध धर्म में उपासिकाओं की भी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती गयी, परिणामस्वरूप वे 'बौद्ध चतुष्परिषद्' की एक इकाई के रूप में स्थापित हुई। यह महत्त्वपूर्ण है कि बुद्ध उपासिकाओं के कर्तव्य पालन और धर्म में उनकी प्रभावी भूमिका से अत्यन्त प्रसन्न थे। खजुत्तरानन्द माता आदि उपासिकाओं को वे कुछ भिक्षुभिक्षुणियों से भी श्रेष्ठ मानते थे। बोझा, सुतना, मनुजा, खेमा, रुचि, बिम्बा, तिस्सा, विशाखा, मिगारमाता, चुन्दी, सोना, नकुलमाता, उत्तरानन्दमाता, सामावती, सुप्पिया जैसी उपासिकाओं द्वारा सद्धर्म में किसी न किसी क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करने की घोषणा है और उनका अष्टशील उपासिकाओं के रूप में उल्लेख हुआ है । ६
SR No.525095
Book TitleSramana 2016 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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