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________________ जैनाचार्यों द्वारा संस्कृत में प्रणीत आयुर्वेद-साहित्य : 49 वीरसिंह देव : (१३वीं शती) इन्होंने चिकित्सा की दृष्टि से ज्योतिष का महत्त्व लिखा है। जैन-ग्रंथावली में इनके द्वारा रचित 'वीर सिंहावलोक' का उल्लेख है।२८ चम्पक : (१३वीं शती) इनके द्वारा रचित 'रसाध्याय' या 'कंकालयरसाध्याय' नामक ग्रन्थ मिलता है। इसका रचनाकाल एवं स्थान अज्ञात है। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि चम्पक रसविद्यानिपुण, उज्ज्वल कीर्तिवान, यशस्वी और नित्यपरोपकार में तल्लीन रहने वाले हैं। यह स्वतन्त्र रचना न होकर ग्रंथकार के अनुसार 'कंकालाध्याय' का वार्तिक है। इस ग्रन्थ में कुल ३८० पद्य हैं। यह ग्रन्थ पं० रामकृष्ण शर्मा कृत संस्कृत टीका सहित काशी संस्कृत सिरीज, चौखम्बा, बनारस से सं० १९८६ में प्रकाशित हो चुका है।२९ मेरुतुङ्ग : (सन् १३८६ ई०) इन्होंने चम्पक के 'कंकालयरसाध्याय' पर टीका लिखी है। यह ग्रन्थ भी काशी संस्कृत सिरीज में छप चुका है। अनन्तदेव सूरि : (१४वीं-१५वीं शती) इनके द्वारा रचित 'रसचिन्तामणि' नामक ९०० श्लोकों वाला रसशास्त्र से सम्बन्धित ग्रन्थ का पता चलता है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ भण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना (ग्रन्थांक-१९२,१९३) में सुरक्षित हैं।२१ माणिक्य चन्द्र जैन : (१४वीं-१५वीं शती) इनके द्वारा रचित 'रसावतार" नामक रस सम्बन्धी ग्रन्थ प्राप्त होता है। इसकी हस्तलिखित प्रति किसी वैद्य यादवजी विक्रमजी आचार्य के पास है। भण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना में (प्रथांक ३७३/१८८२-८३) यह मौजूद है।३२ . पूर्णसेन : (१६वीं शती) इन्होंने वररुचि कृत 'योगशतक' पर संस्कृत टीका लिखी है। इसकी भी हस्तलिखित प्रति भण्डारकर इन्स्टीट्यूट, पूना में (ग्रन्थांक १८५, १०७३/१८८६-९२) विद्यमान है। अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर में भी इसकी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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