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________________ | पुस्तक समीक्षा प्पुस्तक : प्राकृत की पुरुषार्थ कथाएँ, प्रो० प्रेमसुमन जैन, प्राकृत भारती अकादमी जयपुर एवं राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थानं, श्रवणबेलगोला, प्रथम संस्करण, २०१५, पृ० १५९, मूल्य १२०। जैन आगम साहित्य में विद्यमान अनेक कथाबीजों का विकास परवर्ती कथाकारों द्वारा स्वतन्त्र कथाओं के रूप में किया गया है। अनेक कथाएँ लोक जीवन से ग्रहण की गयी हैं। आठवीं सदी में राजस्थान के प्राकृत कथाकार उद्योतन सूरि द्वारा विनित प्राकृत साहित्य की अनुपम कृति 'कुवलयमालाकहा' देश-विदेश के प्राच्य भाषाविदों के बीच बहुत समादृत रचना है। इस ग्रन्थ में साहस, धैर्य, सदाचरण और पुरुषार्थ की अनुपम कथाएँ हैं जो व्यक्तित्व निर्माण में प्रेरणास्पद भूमिका निभाती हैं।. प्रो० प्रेमसुमन जैन ने 'प्राकृत की पुरुषार्थ कथाएँ' नामक अपनी कृति में कुवलयमाला से उन आख्यानों को चुनकर आधुनिक जनसाधारण की भाषा में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है, जो साहस, साधना और पुरुषार्थ को जगाने वाले कथानक हैं। इस पुस्तक में वर्णित छब्बीस कथाएँ इसप्रकार हैं- राजा दृढ़वर्मन का वात्सल्य, २. कुवलयचन्द्र का पुरुषार्थ, ३. राजा पुरन्ददत्त का वैराग्य, ४. चण्डसोम की वेदना, ५. मानभट का दंभ, ६. मायादित्य की कुटिलता, ७. लोभ देव की तृष्णा, ८. मोहदत्त का अनुराग, ९. सार्थवाह के सुख, १०. मूषक के जन्मान्तर, ११. सागरदत्त की प्रतिज्ञा, १२. सिंह का प्रतिबोध, १३. यक्षकन्या कनक प्रभा, १४. वन सुन्दरी ऐणिका, १५. शबरदम्पती की साधना, १६. राजा दर्पफलिक का अनुभव, १७. कुमारी कुवलयमाला से मिलन, १८. विवाह एवं स्वदेश गमन, १९. राजर्षि भानु के चित्रफलक, २०. धातुवादियों से भेंट, २१. पाँचो की पुनः स्वर्गयात्रा, २२. मणिकुमार का भवभ्रमण, २३. कामगजेन्द्र का कौतूहल, २४. वज्रगुप्त द्वारा नारी-मुक्ति, २५. स्वयंभूदेव और पक्षी जगत् एवं २६. महपथ का स्वप्न। साथ ही परिशिष्ट के रूप में कुवलयमाला के अनुच्छेद १-१२ का मूलपाठ हिन्दी अनुवाद के साथ दिया गया है। इस ग्रन्थ की संक्षिप्त किन्तु प्रेरणास्पद कथाएँ, क्रोध, मान, माया, लोभ एवं मोह के कलुषित आवेगों से त्रस्त संसारी जन को पुरुषार्थ से आलोकित पथ पर आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। पुस्तक पाठकों में नैतिक आदर्शों और प्राकृत के अध्ययन में अभिरुचि उत्पन्न करेगा, ऐसा अभीष्ट है। डॉ. राहुल कुमार सिंह
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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