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________________ 2 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 3, जुलाई-सितम्बर, 2015 समाधिमंरण के भेद जैनागमों में मृत्युवरण के अवसरों की अपेक्षा के आधार पर समाधिमरण के दो प्रकार कहे गये हैं- १. सागारी संथारा और २. सामान्य संथारा। सागारी संथारा - अकस्मात् जब कोई ऐसी विपत्ति उपस्थित हो जाय कि जिसमें से जीवित बच निकलना सम्भव न हो, जैसे आग में घिर जाना, जल में डूबने जैसी स्थिति हो जाना अथवा हिंसक पशु या किसी ऐसे दुष्ट व्यक्ति के अधिकार में फँस जाना, जहाँ सदाचार से पतित होने की संभावना हो- ऐसे संकटपूर्ण अवसरों पर जो संथारा ग्रहण किया जाता है उसे सागारी संथारा कहते हैं। यदि व्यक्ति उस विपत्ति या संकटपूर्ण स्थिति से बाहर हो जाता है तो वह पुनः देहरक्षण तथा जीवन के सामान्य क्रम को चालू रख सकता है। सागारी संथारा मृत्यु पर्यन्त के लिए नहीं, वरन् परिस्थिति-विशेष के लिए होता है, अतः परिस्थिति विशेष के समाप्त हो जाने पर उस व्रत की मर्यादा भी समाप्त हो जाती है। सामान्य संथारा - जब स्वाभाविक जरावस्था अथवा असाध्य रोग के कारणं पुन: स्वस्थ होकर जीवित रहने की समस्त आशाएँ धूमिल हो गयी हों, तब यावज्जीवन तक जो देहासक्ति एवं शरीर-पोषण के प्रयत्नों का त्याग किया जाता है वह सामान्य संथारा है। यह यावज्जीवन के लिए होता है अर्थात् देहपात पर ही पूर्ण होता है। सामान्य संथारा ग्रहण करने के लिए जैनागमों में निम्न स्थितियाँ आवश्यक मानी गयी हैं- जब संभी इन्द्रियाँ अपने कार्यों का सम्पादन करने में अक्षम हो गयी हों, जब शरीर सूख कर अस्थिपंजर रह गया हो, पचन-पाचन, आहार-विहार आदि शारीरिक क्रियाएँ शिथिल हो गयी हों और इनके कारण साधना और संयम का परिपालन सम्यक् रीति से होना सम्भव न रहा हो, तभी अर्थात् मृत्यु के उपस्थित हो जाने पर ही सामान्य संथारा ग्रहण किया जा सकता है। सामान्य संथारा के तीन प्रकार हैं- (अ) भक्तप्रत्याख्यान- आहार आदि का त्याग कर देना (ब) इंगिनिमरण- एक निश्चित भूभाग पर हलन-चलन आदि शरीरिक क्रियाएँ करते हुए आहार आदि का त्याग करना, (स) पादोपगमन- आहार आदि के त्याग के साथ-साथ शरीरिक क्रियाओं का निरोध करते हुए मृत्युपर्यन्त निश्चल रूप से लकड़ी के तख्ते के समाने स्थिर पड़े रहना। उपर्युक्त सभी प्रकार के समाधिमरणों में मन का समभाव में स्थित होना अनिवार्य है। समाधिमरण ग्रहण करने की विधि जैनागमों में समाधिमरण ग्रहण करने की विधि भी बतायी गयी है। सर्वप्रथम मलमूत्रादि अशुचि विसर्जन के स्थान का अवलोकन कर नरम तृणों की शय्या तैयार कर
SR No.525093
Book TitleSramana 2015 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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