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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार : 91 दिलवाड़ा के मन्दिर, चन्द्रप्रभ की कुषाणकालीन मूर्ति, देवगढ़ के ऋषभनाथ इत्यादि मूर्तियों के काल, स्थान एवं उनकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुये बताया कि मूर्तियाँ हमें यह सन्देश देती हैं कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह के आधार पर कोई भी व्यक्ति या साधक यशवान् एवं पूज्य हो सकता है। हिक
पास्वनाथ
चाराणसी सावित
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जैनविद्या अध्ययनरत ओटावा यूनिवर्सिटी का छात्र/अध्यापक दल दूसरा व्याख्यान प्रो० हरिहर सिंह, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी का जैन स्थापत्य पर था। प्रो० सिंह ने प्राचीन भारत में बनने वाली 'संरचनात्मक एवं शैलीकृत' दो प्रकार की इमारतों की विशेषताएँ एवं अन्तर का विवेचन करते हुए मानव निर्मित शैलकृत जैन गुफाओं की विशद् विवेचना की। उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा पटना में निर्मित पत्थरों के महलों की विशेषताओं की विवेचना करते हुए इसी काल में निर्मित नागार्जुन एवं बराबर की सर्वप्राचीन साप्त गुफाओं की विशेषताओं, निर्माताओं एवं निर्माण के उद्देश्यों पर विधिवत प्रकाश डाला। इसी क्रम में प्रो. सिंह ने राजगृह में प्राप्त दो जैन गुफाओं के साथ-साथ उदयगिरि तथा खण्डगिरि में खारवेल के परिजनों द्वारा निर्मित जैन गफाओं की विशेषताओं का भी विशद् विवेचन किया। उन्होंने इन गुफाओं में प्राप्त अभिलेखों पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला। प्रो० सिंह ने जूनागढ़ की शृंखलाबद्ध गुफाओं का विवेचन करते हुए चन्द्रगुफा का विशेष रूप से चित्रण किया जहाँ आचार्य हरिषेण के शिष्य पुष्पदन्त एवं भूतबली ने दिगम्बर जैन ग्रन्थ षट्खण्डागम की रचना की। इस क्रम में उन्होंने कर्नाटक के बादामी और अहिरोली की गुफाओं एवं एलोरा की गुफाओं का भी विशद् विवेचन किया। मार प्रो० सिंह ने जैन मन्दिरों की सामान्य विशेषताओं को व्याख्यायित करते हुए संरचनात्मक जैन मन्दिरों की विशिष्टताओं पर भी प्रकाश डाला। इस क्रम में उन्होंने