________________
मुद्राराक्षस में प्रयुक्त प्राकृतों का सार्थक्य : 27 है। क्योंकि कतिपय हस्तलिखित प्रतियों में मागधी के विशिष्ट लक्षणों का निर्वाह किया गया है। जैसे-संस्कृतं 'न्य' के स्थान पर ‘ण्ण,' 'क्ष' के लिए 'हक', 'च्छ' के लिए 'श्च', 'स्थ' के लिए 'स्त', 'ष्ठ' के लिए 'ष्ट का प्रयोग मिलता है। साथसाथ श, ल, और ए का प्रयोग मिलता है। मुद्राराक्षस में शौरसेनी पद्यों के चिह्न भी दृष्टिगोचर होते हैं। यह शास्त्र नियमानुकूल है, क्योंकि गद्य में शौरसेनी का प्रयोग करनेवालों के लिए महाराष्ट्री में गाना आवश्यक नहीं है। ऐसी बात केवल स्त्रियों के साथ देखी जाती है। इस नाटक में शौरसेनी पद्यों का प्रयोग करने वाले पुरुष ही है। अतः पद्य में शौरसेनी का भी प्रयोग अनुचित नहीं है। मद्राराक्षस की रचना पर विचार करने से पता चलता है कि यह रचना कालिदास, भवभूति, भास एवं शूद्रक की रचना की भाँति प्राकृत की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं है फिर भी इस नाटक में प्राकृत प्रयोगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सन्दर्भ :
१. नाट्यशास्त्र, भरत, १/११४ २. दशरूपक १/७,उद्धृत हिन्दी दशरूपक, सम्पा. डॉ. सुधाकर मालवीय, कृष्णदास
अकादमी, वाराणसी, १९९५, पृ.६ पृ०.७ ३. नाट्यशास्त्र, १९/१४७ ४. वस्तु नेता रसस्तेषां भेदकः। दशरूपक १/११, पूर्वोक्त पृ० १३ ५. नाट्यशास्त्र १९/१५२ (मूल) ६. मुद्राराक्षस, विशाखदत्त, अनु. आर.डी.कर्मर्कर, चौखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली
२००२,अंक १/८ ७. वही, पृ० १६५ ८. वही, ५/२ ९. वही, १४/१८ १०. नाट्यशास्त्र १७/४९ ११. वही, १७/३१,४३ १२. वही, १७/२६ १३. काव्यादर्श, १/३४ १४. मागधी तु नरेन्द्रणामन्तःपुरनिवासिनाम्। नाट्यशास्त्र, १७/५१
सन्धिकारश्व रक्षताम् । व्यसने नायकानां चाप्यात्मरक्षासु मागधी, वही १७/५७ १५. मुद्राराक्षस, पूर्वोक्त, पृ.२३ १६. वही, १/२१ १७. वही, पृ. १४२