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________________ संस्कृत छाया सकलस्य परिजनस्य च पुरस्य सामन्तमन्त्रिवर्गस्य । कस्य वा न भवेत्तोषः पुत्र ! तव जन्मसमये ।। २३८ ।। गुजराती अनुवाद २३८. हे पुत्र! सकल परिजन, नगरना सामंत-मन्त्रीवर्ग आदि कोने तारा जन्म समये आनंद न थयो होत? हिन्दी अनुवाद सकल परिजनों को, नगर के सामन्त और मन्त्रीवर्ग आदि किसको तुम्हारे जन्म के समय आनन्द नहीं हुआ होता? गाहा दुविहिय-विहि-विहाणा पडियाए भीसणे य रन्नम्मि । जाओ सि मज्झ पुत्तय! करेमि किं मंद-भग्गा हं? ।। २३९।। संस्कृत छाया दुर्विहितविधिविधानात् पतिताया भीषणे चारण्ये । जातोऽसि मम पुत्र ! करोमि किं मन्दभाग्याऽहम् ? ।।२३९।। गुजराती अनुवाद २३९. नहीं धारेलु विधि-भाग्य करनार होवाथी भयंकर जंगलमा आवी पडया त्यारे हे पुत्र! तुं जनम्यो, मंद भाग्यवाली हुं शुं करूं? हिन्दी अनुवाद ___ दुर्भाग्य के कारण मैं इस भयंकर जंगल में आ पड़ी। तब तुम्हारा जन्म हुआ। मैं मंदभाग्यशाली हूँ, क्या करूं? गाहा जायम्मि तुमे पुत्तय! रन्नपि हु संपयं इमं वसिमं । नटुं भयं असेसं उच्छंग-गए तुमे वच्छ! ।। २४०।। संस्कृत छाया जाते त्वयि पुत्र ! अरण्यमपि खलु साम्प्रतमिदं वसतिम् । नष्टं भयमशेषमुत्सङ्गगते त्वयि वत्स ! ।। २४० ।। गुजराती अनुवाद २४०. हे पुत्र! तारो जन्म थये छते आ जंगल पण वसति समान छे. तुं खोलामा होते छते मारो समस्त भय नष्ट थइ गयो छे.
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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