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________________ गाहा मुच्छा-विरमे य तओ लुलमाणं महि-यलम्मि तं बालं । घित्तूण निजुच्छंगे गरुय-सिणेहेण तत्तो य ।। २३१।। गंतूण जलासन्ने पहावित्ता ताहि नियय-वत्थाई। पक्खालिय एगते उवविट्ठा तरु-लया-गहणे ।। २३२।। संस्कृत छाया मूर्छाविरमे च ततो लुठन्तं महीतले तं बालम् । गृहीत्वा निजोत्सङ्गे गुरुस्नेहेन ततश्च ।। २३१ ।। गत्वा जलाऽऽसन्ने स्नात्वा तदा निजकवस्त्रादि । प्रक्षाल्य एकान्ते उपविष्टा तरुलतागहने ।। २३२ ।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद २३१-२३२. मूर्छा चाली गई त्यारे पृथ्वीतल पर आलोटता ते बालकने अति स्नेह वड़े पोताना खोलामां लइने नजीकना सटोवरमां स्नान करीने त्यारबाद मारा वस्त्रादि धोईने सकांतमां वृक्षनी गहन झाडीमां बेठी। हिन्दी अनुवाद मूर्छा समाप्त होने के बाद जमीन पर लोटते बालक को उठाकर अति स्नेह से मैंने अपनी गोद में लिया, पास के सरोवर में स्नान कर फिर अपने कपड़े आदि धोकर एकान्त में वृक्ष की गहन झाड़ी में बैठ गयी। गाहा तं दिव्वं-मणि-सणाहं उत्तारिय अंगुलीययं हत्था । __कंठम्मि मए बद्धं सुयस्स एवं भणंतीए ।। २३३।। संस्कृत छाया तं दिव्यमणिसनाथमुत्तार्य अंगुलीयकं हस्ताद् । कण्ठे मया बद्धं सुतस्यैवं भणन्त्या ।। २३३ ।। गुजराती अनुवाद २३३. ते दिव्यमणिथी प्रभावित मुद्रिका हाथमाथी उतारीने पुत्रना कंठमां मे आ प्रमाणे बोलता पहेलावी.
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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