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________________ संस्कृत छाया अथ तस्मिन् नीरपूर्णेऽणोरपारे सरोवरे हस्ती । गगनाद् निःसहाङ्गः पतितो मग्नश्च जलमध्ये ।। १८९ ।। गुजराती अनुवाद १८९. हवे ते आंवा पाणीथी भरेला अगाध सरोवरमां गगनथी असक्त अंगवालो हाथी पडयो अने पाणीमां डूबी गयो. (पञ्चभिः कुलकम् ) हिन्दी अनुवाद तभी पानी से भरे अगाध तलाब में आकाश से अशक्त अंगों वाला हाथी गिरा और पानी में डूब गया। (पंचभि कुलकम् ) गाहा- - अह नीसहे गइंदे बुड्ढे गंभीर - नीर- मज्झम्मि । मणिणो माहप्पेणं जल उवरिं चेव थक्का हं ।। १९० ।। - संस्कृत छाया अथ निःसहे गजेन्द्रे मग्ने गम्भीरनीरमध्ये | मणे- महात्म्येन जलोपरिमेव स्थिताऽहम् ।। १९० ।। गुजराती अनुवाद १९०. हवे अशक्त अंगवालो हाथी उंडापाणीमां डूबी गये छते मणिना प्रभावथी हूं जल ऊपर ज रही. हिन्दी अनुवाद अशक्त अंगों वाला हाथी गहरे पानी में डूब गया किन्तु मणि के प्रभाव से मैं ऊपर ही तैरती रही। गाहा आसाइय-फलगावि य उत्तरिउं सर- वरस्स तीरम्मि । उवविट्ठा भय- भीया गुरु- सोगा इय विचिंतंता । । १९१ । । संस्कृत छाया आसदितफलकाऽपि चोत्तीर्य सरोवरस्य तीरे । उपविष्टा भयभीता गुरुशोकेति विचिन्तयन्ती ।। १९१ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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