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________________ संस्कृत छाया अपि च ।। मणिसंयुक्तकरप्रहतो वज्रेणेव ताडितो गजेन्द्रः सः । मुक्त्वा गुरुचीहाडी (चीत्कार) अधोमुखो झटिति गगनात् । १८२ यावन्निपतति वेगेन तावच्च अधोमुखं पश्यन्त्या । छष्टं महदेकं सरोवरं भङ्गुरतरङ्गम् ।। १८३ ।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद १८२-१८३. अने वली मणियुक्त हाथना प्रहारथी जाणे ताडन न करायो होय तेम मोटी गर्जना करीने अधोमुखवाळो जल्दी आकाशथी नीचे वेगपूर्वक उतरे छे. त्यारे नीचे जोती में नाशवंत तरंगोवालुं एक मोटुं सरोवर जोयुं। हिन्दी अनुवाद मणियुक्त हाथ के प्रहार से जैसे कभी किसी ने प्रताड़ित न किया होय, वैसी बड़ी गर्जना कर नीचे मुखवाला हाथी जल्दी से नीचे उतर रहा है। तभी नीचे देखती हुए मुझे तरंग रहित एक तालाब दिखा। गाहा परिहत्थ-मच्छ-पुच्छ-च्छडाहि उच्छलिय-सलिल-उप्पीलं । महु-मत्त-महुयरी-विसर-रुद्ध-वियसंत-तामरसं ।। १८४।। संस्कृत छाया (दक्ष) परिहत्थमत्स्यपुच्छच्छटाभिरुच्छलितसलिलोप्पीलम् (सङ्घातम्)। मधुमत्तमधुकरीविसररुद्धविकसत्तामरसम् ।। १८४ ।। गुजराती अनुवाद १८४. (सरोवरचं वर्णन) माछळीओना पूंछडानी छटाथी जलराशि जेन्मां उछली रही हती, मदोन्मत्त मधुकरीना समुदायथी रुंधायेल विकसित कमलो जेमां छे. हिन्दी अनुवाद वह तालाब ऐसा था जिसमें मछलियों के पूंछ से जलराशि उछल रही थी, जिसमें मदोन्मत्त भंवरों के समुदाय को बन्द कर देने वाले कमल खिले थे।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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