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________________ नया निययावासे देविं दट्ठूण परियणो सव्वो । अइगुरु- सोगो रोवई विविह पलावेहिं दीण - मुहो । । १७१ । । संस्कृत छाया - सापि च दृष्ट्वा राजानं रुदन्ती घर्घरेण शब्देन । चरणविलग्ना राज्ञा अश्रुजल (अप्फुन्न) आपूर्णनयनेन ।। १७० ।। नीता निजकावासे देवीं दृष्ट्वा परिजनः सर्वः । अतिगुरुशोको रोदिति विविधप्रलापै दीनमुखः ।। १७१।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद १७० - १७१. तेणी पण राजाने जोइने गद्गद् शब्दों वड़े रडती अश्रुजलथी पूर्ण नेत्री वड़े राजाना चरणमां पडी. ओ राजा पण तेणीने पोताना महेलमा लइ गयो, महाराणीने जोइने अत्यंत शोकयुक्त दीनमुखवाली समस्त परिजन वर्ग विविध प्रलापो वड़े रडवा लाग्यो. हिन्दी अनुवाद राजा को देखकर गद्गद् होकर रोती हुई आंसुओं से भरी आंखों वाली वह राजा के चरण में गिर पड़ी। राजा भी उसे अपने महल में ले गए। महारानी को देखकर अत्यन्त शोकाकुल दीन मुखवाले परिजन रोने लगे । गाहा अह कय- सरीर-चिट्ठा पुट्ठा कमलावई नरिंदेण । तइया करिणा नीयाए किं तुमे देवि! अणुभूयं ? ।। १७२ ।। संस्कृत छाया अथ कृतशरीरचेष्टा पृष्टा कमलावती नरेन्द्रेण । तदा करिणा नीतया किं त्वया देवि ! अनुभूतम् ? ।। १७२ ।। गुजराती अनुवाद १७२. हवे शारीरिक क्रियाओ पूर्ण करी राजाए कमलावती राणीने पूछयुं. हे देवी! हाथी तने उंचकीने लइ गयो त्यारे ते शुं अनुभूति करी? हिन्दी अनुवाद पश्चात् शारीरिक दैनिक क्रियाएँ पूर्ण कर राजा ने कमलावती रानी से पूछाहे देवी! जब हाथी आपको ले गया तब आपने क्या अनुभव किया ?
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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