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________________ संस्कृत छाया यदा नरेन्द्र ! स्वप्ने गृह्णासि विषमस्थितां कुसुममालाम् । ततश्च मासमात्रे समागमस्तव देव्याः ।। १४३ ।। गुजराती अनुवाद १४३. 'हे नरेन्द्र ! ज्यारे स्वप्नमां तु विषम स्थानमा रहेली पुष्पमालाने ग्रहण करीश त्यारथी एक महिनामा तने देवीनुं मिलन थशे. हिन्दी अनुवाद हे राजा! जब आप विषम स्थान में पड़ी पुष्पमाला का ग्रहण करेंगे, उसके एक महीने के अन्दर आपका देवी से मिलन होगा। गाहा होही तणओ तीए विजुज्जिही किंतु जाय- मेत्तो सो । निय - माऊए, नर - वर ! एवं किल कहइ हु निमित्तं । । १४४ । । संस्कृत छाया भविष्यति तनयस्तस्या वियोक्ष्यते किन्तु जातमात्रः सः । निजमातुः, नरवर ! एवं किल कथयति खलु निमित्तम् ।। १४४।। गुजराती अनुवाद १४४. राणीने पुत्र थशे पण हे राजन् ! जन्मतानी साथे तेने मातानो वियोग थशे. ए प्रमाणे निमित्तशास्त्र कहे छे. हिन्दी अनुवाद रानी को पुत्र प्राप्ति होगी किन्तु हे राजन् ! जन्म के साथ ही उसका माँ से वियोग हो जायेगा, ऐसा ज्योतिष शास्त्र कह रहा है। गाहा पुट्ठो पुणरवि रन्ना जप्पणि- विउत्तो स जीविही किं नो? | कत्थवि वुद्धिं जाही, कइया व समागमो तेण ? । । १४५ । । संस्कृत छाया पृष्टः पुनरपि राज्ञा जननीवियुक्तः स जीविष्यति किं न ? । कुत्राऽपि वृद्धिं यास्यति, कदा वा समागमस्तेन ? ।। १४५ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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