SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया भणितं देव्या ततोऽश्रुजलासारसिक्तस्तनया । प्रियतम ! तव प्रसादात् सम्पद्यते वाञ्छितं सर्वम् ।। ३५ ।। गुजराती अनुवाद ३५. त्यारे अश्रुजलधाराथी सिंचायेला स्तनवाली देवीए कह्यु-हे प्रियतम! तारा प्रसाद थी बधा वांछित पूर्ण थाय छे. हिन्दी अनुवाद तब अश्रुजल धारा से सिंचित स्तनवाली देवी ने कहा- हे प्रियतम! आपकी कृपा से सभी वांछित कार्य सम्पन्न होते हैं। गाहा तं नत्थि किंपि सोक्खं तुह प्पसायाउ जं न मे पत्तं ।। नवरं पुत्त-पलोयण-सोक्खं सुइणेवि नो द8 ।।३६।। संस्कृत छाया तन्नास्ति किमपि सुखं तव प्रसादात् यन्न मह्यं प्राप्तम् । नवरं पुत्रप्रलोकनसौख्यं स्वप्नेऽपि नो छष्टम् ।। ३६ ।। गुजराती अनुवाद १६. तारा प्रसादथी एवं कोई पण सुख नथी जे मने प्राप्त न थयु होय... मात्र पुत्र दर्शन- सुख स्वप्नमां पण जोयुं नथी. हिन्दी अनुवाद आपकी कृपा से ऐसा कोई सुख नहीं है जो मुझे प्राप्त नहीं है। मात्र पुत्र जन्म का सुख मैंने स्वप्न में भी नहीं देखा। गाहा धन्नाउ ताउ नारीओ इत्थ जाओ अहोनिसिं नाह!। निययं थणं धयंतं थणंधयं हंदि! पिच्छंति ।।३७।। संस्कृत छाया धन्यास्ता नार्योऽत्र या अहर्निशं नाथ ! । निजकं स्तनं धयन्तं स्तनन्धयं हन्दि ! प्रेक्षन्ते ।। ३७ ।।
SR No.525092
Book TitleSramana 2015 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy