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स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन
साध्वी प्रशंसाश्री 'मोक्षा' चेतन-अचेतन तत्त्वों पर स्वप्नों का प्रभावः स्वप्न क्या हैं? स्वप्न क्या हैं? ये क्यों आते हैं? इनका क्या परिणाम होता है? ये किस प्रकार के संकेत देते हैं? सभी को भिन्न-भिन्न स्वप्न क्यों आते हैं? ये काल्पनिक होते हैं, प्रतीकात्मक होते हैं, सांकेतिक होते हैं अथवा वास्तविक? इसकी सम्पूर्ण खोज अभी तक नहीं हो पाई है। इस पर अब तक आध्यात्मिक एवं मनोविज्ञान जगत् में जितनी भी खोजें हुई हैं तथा वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक जितने रहस्यों को प्रकट किया गया है, वे अपूर्ण हैं फिर भी इनके आधार पर कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों का पता चला है। स्वप्न वास्तव में मन की क्रियाओं, उसकी वृत्तियों, भावनाओं एवं क्रिया प्रणाली का ही एक अंग है। यह मन की अभिव्यक्ति एवं उसकी वृत्तियों का प्रक्षेपण ही है। जीवन का संपूर्ण रहस्य मन में छिपा है, जिसकी अभिव्यक्ति ही जीवन की क्रियाओं का संचालन करती है। स्वप्न मन की ही एक अवस्था है, जिसके माध्यम से मन अपनी अभिव्यक्ति देता है। स्वप्न का अर्थ एवं परिभाषा - व्यक्ति निद्रावस्था में स्वप्न देखता है। नींद टूटने पर कुछ स्वप्न उसे याद रहते हैं और कुछ वह भूल भी जाता है। निद्रावस्था में चेतना निष्क्रिय हो जाती है, फिर स्वप्न आते हैं, क्योंकि चेतना के निष्क्रिय होने से उसकी लगाम ढीली पड़ जाती है, फलस्वरूप अचेतन मन क्रियाशील हो जाता है और स्वप्न के रूप में इच्छाओं की पूर्ति होने लगती है। जैसे ही हमारा चेतन मन सो जाता है, वैसे ही अचेतन मन सक्रिय होकर अपने सपनों के दल-बल सहित हमारे चेतना पटल पर आ धमकता है। व्यक्ति स्वप्नों में अपने आपको दुःख की हालत में देखता है, तो कभी आनंद की अवस्था में। स्वप्नों की विभिन्न प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। स्वप्नों का अर्थ जानने के लिये प्रायः सभी लोग उत्सुक रहते हैं। स्वप्नों