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रंग थे- सरलता, मृदुता, दूरदर्शिता, निरभिमानता, विवेकशीलता, कार्य-कुशलता एवं दृढ़ संकल्प। उन्होंने जैन धर्म-दर्शन को सिद्धान्त के साथ-साथ व्यवहार में भी अपनाया था। करुणा और प्राणिमात्र के प्रति दया के वे प्रतिमूर्ति थे। उनका अचानक हम सबके बीच से चले जाना एक ऐसी अपूरणीय क्षति है जिसको कभी भी भरा नहीं जा सकता। आज विद्यापीठ का कुशल नेतृत्व श्री रोमेश चन्द्र बरार, श्री इन्द्रभूति बरड़ तथा श्री सुदेव बरार के योग्य, कर्मठ और सबल हाथों में है किन्त श्री भूपेन्द्रनाथजी जैन की कमी हमेशा खलेगी। वर्तमान प्रबन्ध समिति श्री भूपेन्द्रनाथजी जैन द्वारा छोड़े अधूरे कार्य को पूर्ण करने हेतु कृतसंकल्प है। श्री भूपेन्द्रनाथजी जैन के अन्त के साथ ही पार्श्वनाथ विद्यापीठ के एक स्वर्णिम युग का भी अन्त हो गया। उनकी यादें सदा हमें सन्मार्ग पर अग्रसर होने के लिये प्रेरित करती रहेंगी। श्रमण का यह अंक स्व. श्री भूपेन्द्रनाथजी जैन को सादर समर्पित है।
डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय