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आध्यात्मिक विकास का रहस्य : 25 यह वृत्तिसंक्षय भावनादि के अभ्यास के फल के रूप में वर्णित है जो आत्म-कर्म-संयोग की योग्यता को नष्ट करता है।२४ वृत्तिसंक्षय आत्मा को कैवल्य प्राप्ति के समय तथा निर्वाण प्राप्ति के समय प्राप्त होता है। यद्यपि वृत्ति निरोध ध्यान आदि की अवस्था में भी होता है किन्तु वह आंशिक होता है; सम्पूर्ण वृत्तिसंक्षय इसी अवस्था में होता है। महर्षि पतंजलि के संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात योग का अन्तर्भाव इन चार योगों में हो जाता है। अध्यात्म, भावना, ध्यान और समता इनमें संप्रज्ञात योग का अन्तर्भाव होता है और वृत्ति संक्षय में असंप्रज्ञातयोग का समावेश होता है। इस प्रकार आध्यात्मिक विकास द्वारा साधक शनैः शनै आत्मोत्क्रान्ति करता हआ मोक्ष अथवा निर्वाण पद अथवा चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची: १. AConstructive Survey of Upanisadic Philosophy,R.D.Ranade, Oriental
Book Agency, 1926, p. 288 पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका, पद्मनन्दि, एकत्वसप्तति अधिकार, ६४ मोक्खेण जोयणाओ जोगो सव्वो वि धम्मवावारो। - योगविंशिका-१ योगबिन्दु, आचार्य हरिभद्र, ३ वही, १८७-९३ वही, ३०२ . वही, १०९-१० अध्यात्म भावना ध्यानं, समता वृत्तिसंक्षयः।
मोक्षेण योजनाद्योगः, एष श्रेष्ठो यथोत्तम् ॥ वही, ३१ ९. वही, ४१९-२१ ।
वही, ३८९
वही, ६८ १२. वही, ३५८
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