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________________ 16 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1 जनवरी - मार्च 2015 , किया है उस सीमा तक पाश्चात्य मनोविज्ञान अभी तक नहीं पहुँच पाया है । मन के गूढ़ रहस्यों को कुछ स्थूल प्रश्नों से नहीं जाना जा सकता । फ्रायड एक मनोवैज्ञानिक थे तथा अध्यात्मविद्या से अनभिज्ञ थे। उनका सम्बन्ध मनोरोगियों तक ही सीमित था । उन्होंने ऐसे ही रोगियों के स्वप्नों का अध्ययन किया जो मानसिक रूप से रुग्ण थे। वे पूरे स्वप्न विज्ञान को नहीं जान सके जिसे कोई अध्यात्मवादी ही जान सकता है। जिसे शरीर रचना का पूर्ण ज्ञान है, उस शरीर, मन, बुद्धि आदि को स्वतन्त्र इकाई मान लेना ही सबसे बड़ा भ्रम है। आत्मा (चेतना) को संयुक्त करके इसके पूर्ण स्वरूप को जाना जा सकता है। जिस प्रकार भगवान् महावीर ने अनेकान्तवाद सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है उसी प्रकार स्वप्नों के वास्तविक स्वरूप को अनेकान्तात्मक दृष्टि से ही समझा जा सकता है। एकांगी रूप से स्वप्न की व्याख्या सम्भव नहीं है। संदर्भ : १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. दशोराद्ध नंदलाल, मन की अद्भुत शक्तियाँ, पृ० १२७-८ भगवतीसूत्र ( द्वादशोभाग), टीकाकार, पू० घासीलालजी म० पृ० १९०-१, १९५ सुलेमान मोहम्मद - मनोरोग विज्ञान, पृ० ११८ वर्मा एवं श्रीवास्तव - आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, पृ० १७४-७५ मखीजा एवं मखीजा - असामान्य मनोविज्ञान, पृ० ४१ क) वर्मा एवं श्रीवास्तव - आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, पृ० १७५-६ ख) सुलेमान मोहम्मद - मनोरोग विज्ञान, पृ० ११८-२० सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा, पृ० ८९-९० शर्मा रामनाथ, अनुवादक - दुर्गाप्रसाद जैन स्वप्नसार - समुच्चय ( भूमिका पृ० १५) पूर्वोक्त, स्वप्नसारसमुच्चय, पृ० १६-१७, २४ विद्यालंकार जगदीश प्रसाद, भारतीय मनोविज्ञान, पृ० १५८ सुलेमान मोहम्मद - मनोरोग विज्ञान पृ० १२४ - २६ भगवती, पूर्वोक्त, (द्वादशो भाग) पृ० १९१ - ९४ -
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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