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________________ 10 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 1, जनवरी-मार्च 2015 फ्रायड के अनुसार इस स्वप्न की व्याख्या इस प्रकार है - इस स्वप्न में बचपन में दमित कामेच्छा उत्पन्न होती है। सीढी चढ़ना यौन संभोग का प्रतीक है। माँ और बहन का साथ होना बाल्यकाल की काम वृत्ति का प्रतीक है। छत पर पहुँचने पर बच्चे का जन्म होना यौन-संभोग का प्रतिफल है। युंग ने इस स्वप्न को समझने के लिए स्वतंत्र साहचर्य की विधि का सहारा लिया। उसने इस विधि के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि यह स्वप्न उस युवक की वर्तमान परिस्थिति तथा भावी जीवन की झलक को अभिव्यक्त करता है। माँ कर्त्तव्यहीनता का बोधक है एवं बहन सच्चे प्रेम का द्योतक है। सीढ़ी पर चढ़ना भविष्य में उन्नति करने का प्रतीक है तथा बच्चे का होना उस युवक के भावी जीवन के सुखमय पहलू का द्योतक है। एडलर के अनुसार “सीढ़ियों पर चढ़ना अपनी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने का बोधक है। माँ और बहन का साथ में होना युवक में आत्म-निर्भरता के अभाव का बोधक है अर्थात् वह दूसरों के बिना अपना कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकता"। निष्कर्षः तीनों मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की धारणाओं, संघटकों तथा व्याख्याओं में अन्तर है, किन्तु एकान्तरूप से कोई भी सिद्धान्त स्वप्न के सभी पक्षों की समुचित व्याख्या करने में समर्थ नहीं है। इस संदर्भ में किस्कर का कथन अधिक युक्तिसंगत लगता है कि ये सभी सिद्धांत एकदूसरे के पूरक हैं। जैन साहित्य में स्वप्न के प्रकार भगवतीसूत्र की टीका में स्वप्नों के पाँच प्रकार बताये गये हैं। १. यथातथ्य २. प्रतानस्वप्न ३. चिन्तास्वप्न ४. तद्विपरीत स्वप्न और ५. अव्यक्तदर्शन स्वप्न। १. यथातथ्य स्वप्न - व्यक्ति इस स्वप्न में जिस प्रकार के पदार्थ को देखता है वैसा ही होना यथातथ्य स्वप्न है। जैसे किसी पुरुष ने स्वप्न देखा कि किसी ने उसे हाथ में स्वर्णमुद्रा दी है और वह पुरुष जाग जाता
SR No.525091
Book TitleSramana 2015 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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