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स्वप्न : एक मनोवैज्ञानिक चिन्तन : 5 जाती हैं, किन्तु जिन इच्छाओं की पूर्ति नहीं होतीं, वे शान्त नहीं होती, बल्कि अनेक प्रकार की मानसिक उत्तेजनाओं का कारण बनती हैं। उत्तेजना मनुष्य के अचेतन मन में स्थिर रहती है और अवचेतन अवस्था (Sub-conscious State) में प्रकाशित होने की चेष्टा करती है, जिसके फलस्वरूप हम स्वप्न देखते हैं। "स्वप्नसार-समुच्चय" में स्वप्न आने के प्रमुख नौ कारण : 'स्वप्नसार-समुच्चय' में वर्णित है कि- मनुष्यों को नौ कारणों से स्वप्न आते हैं- १. जानी हुई बात, २. देखी हुई बात, ३. सुनी हुई बात, ४. वात, पित्त और कफ विकार से, ५. मल-मूत्र की बाधा रोकने से, ६. चिन्ता करने से, ७: देव के विशिष्ट अनुष्ठान करने से ८. प्रबल (अधिक) पुण्योदय के योग से, ९. प्रबल (अधिक) पापोदय के कारण। प्रथम छ: कारणों से आये हुए स्वप्नों का कोई शुभाशुभ फल नहीं मिलता। अन्तिम तीन कारणों से आये हुए स्वप्न शुभाशुभ फल देते हैं।
- वायु विकार के कारण वृक्ष, पर्वत या टीलों पर चढ़ना, आकाश में उड़ना आदि स्वप्न आते हैं। पित्त के प्रकोप से मनुष्य सुवर्ण, रत्न, सूर्य, अग्नि, आदि अनेक प्रकार के स्वप्न देखता है। कफ की प्रबलता के कारण अश्व, चन्द्रमा, शुक्ल पक्ष, नदी, सरोवर, समुद्र इत्यादि लांघना देखता है, ये सब निरर्थक और निष्फल होते हैं। 'स्वप्नसार-समुच्चय' में स्वप्न आने के अन्य कारण : जब हम किसी गन्दे और बदबूदार कमरे में सोते हैं, अथवा गन्दे कपड़ों को ओढ़कर सोते हैं तो अप्रिय स्वप्न देखते हैं। मुँह ढंककर सोने से बरे स्वप्न आते हैं। हमारी साँस से निकली दुर्गन्ध फिर हमारे दिमाग में आ जाती है और बुरे स्वप्नों को पैदा करती है। शयन कक्ष में यदि बाहर का शोरगुल सुनाई देता है तो यह एक विशेष प्रकार के स्वप्नों का कारण बन जाता है। शयन कक्ष में यदि बाहर से आने वाली आवाज कर्णप्रिय, मन्त्रमुग्ध करने वाली हो तो सुंदर स्वप्न आते हैं। यदि आवाज अरोचक और दुःखदायी हो, तो दु:खदायी स्वप्न आते हैं। इस प्रकार स्वप्न हमारी शारीरिक उत्तेजनाओं के कारण बनते हैं।