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________________ संस्कृतकाव्यशास्त्र एवं प्राकृतकाव्यसाहित्यकाव्यप्रकाश के विशेष सन्दर्भ में डॉ0 सुमन कुमार झा संस्कृत-काव्यशास्त्र की विकास यात्रा में प्राकृत-काव्यसाहित्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राकृत जनसामान्य की भाषा एवं प्राकृत-साहित्य लोकसाहित्य के रूप में प्रसिद्ध है। साहित्यशास्त्र विशेषकर नाटक एवं नाटकशास्त्र लोक एवं लोकपरम्परा का संवाहक है। प्राचीन संस्कृत नाटकग्रन्थों में प्रयुक्त प्राकृतभाषा के विविध-रूप इस तथ्य के प्रमाण हैं। अतः प्राकृत काव्यसाहित्य एवं संस्कृत साहित्यशास्त्र का अन्तःसम्बन्ध सहज एवं स्वाभाविक है। अर्धमागधी, महाराष्ट्री, शौरसेनी, पैशाची एवं अपभ्रंश भाषाओं में रचित प्राकृत काव्यसाहित्य विविधता एवं विशालता को लिये हुए है। उसमें भी महाराष्ट्री प्राकृत का वैशिष्ट्य सर्वथा प्रथित है। यथा महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः । सागरः सूक्तिरत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम्।।' महाराष्ट्री प्राकृत में रचित प्राकृत काव्यग्रन्थों से अनेक गाथाएं उदाहरण के रूप में संस्कृत साहित्यशास्त्रीय ग्रन्थों में विभिन्न सन्दर्भो, विधानों एवं तत्त्वों के निरूपण के प्रसंग में प्राप्त होती हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओं में रचित समग्र-साहित्य का समानरूप से नियमन, विधि-विधान एवं मूल्यांकन की सम्पूर्ण प्रविधि प्रस्तुत करता है। प्राचीन काल के आचार्यों, समीक्षकों, महाकवियों एवं आलंकारिकों के द्वारा समान रूप से दोनों भाषाओं में साहित्य का सृजन किया गया है। उदाहरणार्थ- आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, रुद्रट, राजशेखर, भोजराज, माणिक्यचन्द्र, हेमचन्द्र एवं आचार्य विश्वनाथ के द्वारा रचित साहित्य को देखा जा सकता है।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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