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________________ 28 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 मनुष्य और तिर्यंचों के सामान्य से छहों लेश्याएँ होती हैं। परन्तु विशेष रूप में एकेन्द्रिय और विकलत्रय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) जीवों के कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याएँ ही होती हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के कृष्ण आदि चार लेश्याएँ होती हैं, क्योंकि असंज्ञी पंचेन्द्रिय कापोतलेश्या वाला जीव मरकर पहले नरक में जाता है तथा तेजोलेश्या सहित मरने से भवनवासी और व्यन्तर देवों में उत्पन्न होता है। कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्या सहित मरने से यथायोग्य मनुष्य या तिर्यंचों में उत्पन्न होता है। संज्ञी लब्ध्यपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि मनुष्य और तिर्यंच तथा अपि शब्द से असंज्ञी लब्ध्यपर्याप्तक और सासादन गुणस्थानवर्ती निर्वृत्यपर्याप्त तिर्यंच मनुष्य तथा भवनत्रिक इतने जीवों में कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याएँ ही होती हैं। तिर्यच और मनुष्य उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों के सम्यक्त्व काल के भीतर विशिष्ट संक्लेश के हो जाने पर भी ये तीन अशुभ लेश्याएँ नहीं हुआ करतीं। किन्तु उसकी विराधना करके सासादन बनने वालों के अपर्याप्त अवस्था में तीन अशुभ लेश्याएँ ही हुआ करती हैं। भोगापुण्णगसम्मे काउस्सजहण्णिय हवे णियमा। सम्मे वा मिच्छे वा पज्जत्ते तिण्णि सुहलेस्सा।।" भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले निर्वृत्यपर्याप्तक सम्यग्दृष्टि जीवों में कापोतलेश्या का जघन्य अंश होता है तथा सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीवों के पर्याप्त अवस्था में पीत आदि तीन शुभ लेश्याएँ ही होती हैं। अयदो त्ति छ लेस्साओ सुहतियलेस्साहुदेसविरदतिये। तत्तो सुक्कालेस्सा अजोगिठाणं अलेस्स तु।।" अर्थात् चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त छहों लेश्याएँ होती हैं तथा देशविरत, प्रमत्तविरत और अप्रमत्तविरत इन तीन गुणस्थानों में तीन शुभ लेश्याएं ही होती हैं। किन्तु इसके आगे अपूर्वकरण से लेकर सयोगकेवली पर्यन्त एक शुक्ललेश्या ही होती है और अयोगकेवली गुणस्थान लेश्या रहित है अर्थात् समस्त सिद्ध राशि अलेश्या-लेश्यारहित है।
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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