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________________ लेश्या स्वरूप एवं विमर्श : 21 कृष्णलेश्या वाले जीव के भाव अशुभतम् अर्थात् मूल से नाश करने वाले भाव होते हैं। कृष्ण लेश्या वाला जीव तीव्र क्रोध करता है, बैर को नहीं छोड़ता है, युद्ध के लिए सदा तत्पर रहता है, दया-धर्म से रहित होता है, दुष्ट होता है और किसी के वश में नहीं आता है। (ii) नीललेश्या : मंदोबुद्धिविहीणो, णिविणाणी य विसयलोलो य। माणी मायी य तहा, आलस्सो चेव भेज्जो य।। णिद्दावंचण बहुलो, धणधण्णे होदि तिव्वसण्णा य। लक्खणमेयं भणियं, समासदो णीललेस्सस्स। जो जीव मंद अर्थात् स्वच्छन्द होता है, वर्तमान कार्य करने में विवेक रहित होता है, कला-चातुर्य से रहित होता है, पंचेन्द्रिय के विषयों में लम्पट होता है, मानी, मायावी, आलसी, भीरु तथा दूसरों का अभिप्राय सहसा न जानने वाला, अति निद्रालु, दूसरों को ठगने में अतिदक्ष हो और धन-धान्य के विषय में जिसकी अतितीव्र लालसा हो, वह नील लेश्या वाले परिणाम से युक्त होता है। ऐसा आसक्त जीव नीललेश्या के साथ धूम-प्रभा नरक पृथ्वी तक जाता है। (iii) कापोतलेश्या : रूसइ जिंदइ अण्णे, दूसइ बहुसो य सोय भय बहुलो। असुयइ परिभवइ परं, पसंसये अप्पयं बहुसो।। ण य पत्तियइ परं सो अप्पाणं यिव परं पि भण्णंतो। थूसइ अभित्थुवंतो, ण य जाणइ हाणि-वड् िवा।। मरणं पत्थेइ रणे, देइ सुबहुगं वि थुव्वमाणो दु। ण गणइ कज्जाकज्जं, लक्खणमेयं तु काउस्स।।" अर्थात् दूसरे के ऊपर क्रोध करना, दूसरों की निन्दा करना, अनेक प्रकार से दूसरों को दुःख देना अथवा दूसरों से बैर करना, अधिकतर शोकाकुलित रहना तथा भयग्रस्त रहना या हो जाना, दूसरों के ऐश्वर्यादि को सहन न कर सकना, दूसरे का तिरस्कार करना, अपनी
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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