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प्राचीन भारत में सिंचाई व्यवस्था : 17 का उल्लेख है। लगभग 150 ई. के रूद्रदामन के गिरनार शिलालेख से ज्ञात होता है कि मौर्य कालीन सौराष्ट्र के प्रशासक पुष्यमित्र ने सुदर्शन सरोवर बनवाया था। इसके जल का उपयोग सिंचाई के लिए होता था। एक बार अधिक वर्षा होने के कारण बांध टूट गया। रूद्रदामन ने उस बांध को पुनः बंधवाया।23 स्कन्दगुप्त ने भी इस बांध का जीर्णोद्धार करवाया था 24 कलिंग के राजा खारवेल ने प्रभूत . धन व्यय करके तनसुली से नहर निकलवायी थी, जो सिंचाई और आवागमन की दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार सिंचाई प्रबन्ध करने वाले कृषकों को राज्य प्रोत्साहन देता था। अगर कोई कृषक सिंचाई के लिये नये सीमा बंध बनाता था, तो पाँच साल के लिए उसे करमुक्त कर दिया जाता था और यदि टूटे-फूटे की मरम्मत करके उसे सिंचाई योग्य बनाता था, तो चार साल के लिए करमुक्त कर दिया जाता था।25 इससे प्रतीत होता है कि राज्य सिंचाई कर भी लेता था पर जैन ग्रंथों में सिंचाई-कर का उल्लेख नहीं हुआ है। सन्दर्भ :
कीथ, ए.बी. 'हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर' । ऋग्वेद- 7, 49-2 वही-7, 49-2 वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड। महाभारत-12, 128-28 । वही, 1, 31 धर्मकोश, पार्ट-1, 9, 2791 वही, 5, 151 आवश्यक चूर्णि 1/556 | प्रश्नव्याकरण 1/14 | अर्थशास्त्र 2, 24। मुखर्जी, आर.के., चन्द्रगुप्त मौर्य एण्ड हिज टाइम्स, पृ. 145 | अष्टाध्यायी, 1/1/24 | वृहत्कल्प भाष्य, भाग-2, गाथा 826 | विमलसूरि- पउमचरियं, 10/35, 49। डॉ. सहाय, पूर्वोक्त, खारवेल का हाथी गुंफा, अभिलेख ।
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