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________________ 114 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 ऐसे सन्तों में आचार्य पूज्यपाद अग्रगण्य हैं। उनकी अनेक रचनाओं में इष्टोपदेश अपनी उपदेशात्मक शैली के कारण सुविख्यात है। अनेक स्थानों से इसका प्रकाशन हुआ है। अनेक परीक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में भी यह पढ़ाई जाती है। स्वाध्यायी भी इसका स्वाध्याय कर अपना कल्याण करते हैं। इसकी भाषा और भाव दोनों ही सरल और हृदयग्राही हैं। परमपूज्य दिगम्बर जैनाचार्य विद्यासागर जी महाराज ने इसका पद्यानुवाद करके इसे रामचरित मानस की तरह घर-घर में पहुँचा दिया है। बैरिस्टर चम्पतराय जी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद "The Discourse Divine" नाम से किया है। अंग्रेजी अनुवाद के साथ यह कृति अब तक अप्राप्त थी। श्री अजितप्रसाद जैन, रेवाडी ने अथक परिश्रम करके आचार्य श्री विद्यासागरजी कृत पद्यानुवाद एवं विवेचना जो कि अत्यन्त सरल एवं हृदयग्राही शब्दों में की गई है और बैरिस्टर चम्पतराय जी कृत अंग्रेजी अनुवाद सम्प्रति मूल के साथ प्रकाशित किया है इसके लिए जैन समाज को उनका आभार मानना चाहिए। ग्रन्थ का मुद्रण, कागज और सेटिंग आकर्षक है, जो प्रायः ऐसे ग्रन्थों में कम ही देखने में आता है। आगम प्रकाशन के पदाधिकारियों की यह गुरुभक्ति स्तुत्य और अनुकरणीय है। आशा है पाठक इसे पढ़कर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। डॉ. कपूरचंद जैन, डॉ0 ज्योति जैन, खतौली (उत्तर प्रदेश) *****
SR No.525089
Book TitleSramana 2014 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2014
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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