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सम्पादकीय
श्रमण का अक्टूबर-दिसम्बर २०१३ अंक प्रस्तुत करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस अंक में हिन्दी के चार और अंग्रेजी के दो लेख सम्मिलित किये गये हैं। हिन्दी में तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित-साहित्य, कला एवं भारतीय परम्परा की पृष्ठभूमि में (डॉ० शान्ति स्वरूप सिन्हा), भाषा-चिन्तन की परम्परा में जैन दर्शन की भूमिका (डॉ० अर्चना रानी दूबे), अनेकान्तवाद : उद्भव और विकास (डॉ० योगेश कुमार जैन),संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन (ओम प्रकाश सिंह) तथा अंग्रेजी में Literature on Prakrit Grammar (Dr. Ashok Kumar Singh), The Siddhacakra and Namokāra Mantra (Mr. Drew Stephens) लेख प्रकाशित हो रहे हैं। हमें यह बताते हुए सन्तोष का अनुभव हो रहा है कि वर्ष २०१३ अकादमीय गतिविधियों की दृष्टि से उल्लेखनीय रहा है। जैन विद्या पर १५ दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला लगातार तीसरी बार आयोजित हुई। इसी प्रकार प्राकृत भाषा के विकास के अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्राकृत भाषा एवं साहित्य पर ९ दिवसीय एवं २१ दिवसीय दो राष्ट्रीय कार्यशालायें आयोजित हुई। इन कार्यशालाओं में प्रतिभागियों की संख्या, उनकी रुचि एवं उत्साह को देख कर इस प्राच्य भाषा के अध्येताओं की संख्या में विस्तार के प्रति हम आशान्वित हैं। इसके अतिरिक्त एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी पुस्तकालय पर आयोजित हुई। प्रो० जयेन्द्र सोनी (स्वीडेन) का 'द्रव्य, गुण एवं पर्याय' पर एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन विद्यापीठ ने किया। साथ ही हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आई०एस०जे०एस० उपक्रम के अन्तर्गत जूनजुलाई में विदेशी छात्र-छात्राओं का विद्यापीठ में आगमन हुआ एवं उन्होंने जैन धर्म-दर्शन का अध्ययन किया।
नव-वर्ष की मंगल कामनाओं सहित
___ डॉ० अशोक कुमार सिंह