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________________ संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के जैन कोशों का अध्ययन : 35 आगमोत्तर परंपरा में अनेक कोशों की रचना हुई। प्राचीन कोश ग्रंथों के उद्धरणों को देखने से ज्ञात होता है कि प्राचीन कोशों की अपेक्षा सर्वथा भिन्न थे। पुरातन समय में व्याकरण और कोश का विषय लगभग एक ही श्रेणी का था। दोनों ही शब्दशास्त्र के अंग थे। लौकिक संस्कृत भाषा के उपलब्ध कोशों में सबसे प्राचीन और ख्याति प्राप्त अमर सिंह का अमरकोश है। अमर सिंह बौद्ध धर्मावलम्बी थे, कुछ विद्वान इन्हे जैन भी मानते हैं, इनका समय चौथी शताब्दी माना जाता है। जैन परम्परा में सर्वप्रथम उपलब्ध कोश की कृतियों के रूप में नवीं शती में महाकवि धनंजय के तीन कोश उलब्ध होते है-नाममाला, अनेकार्थ नाममाला, अनेकार्थ निघण्टु। जैन कोश साहित्य की समृद्धि की दृष्टि से बारहवीं शताब्दी महत्त्वपूर्ण है। इस शती में केशवस्वामी ने नानार्थार्णव संक्षेप एवं शब्दकल्पद्रुम की रचना की है। इस शताब्दी में आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थ संग्रह, निघण्टुशेष और देशीनाममाला कोशों की रचना की है। चौदहवीं शताब्दी में श्रीधर सेन ने विश्वलोचन कोश की रचना की है। इसका दूसरा नाम मुक्तावली कोश है। आधुनिक जैन कोश ग्रंथों की रचना उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से प्रारंम्भ होती है। उनका प्रकाशन बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ से होता है तब से लेकर अब तक जैन कोशों की रचना होती रही है। आधुनिक कोश ग्रंथों, में अभिधानराजेन्द्र कोश (सात भागों), अर्धमागधी कोश (चार भाग), अभिधानराजेन्दकोश, पाइअसद्दमहण्णवो, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (पांच भागों), जैनलक्षणावली (तीन भाग), प्राकृत हिन्दी कोश आदि अनेक कोश उपलब्ध होते हैं जिनका विवेचन इसी शोध प्रबन्ध में किया गया है। द्वितीय अध्याय : संस्कृत भाषा के जैन कोश एवं कोशकार - धनञ्जय नाममाला - उपलब्ध संस्कृत जैन कोशों में धनञ्जय नाममाला सर्वप्रथम कोश है। इनका समय नौवीं शताब्दी है। १.
SR No.525086
Book TitleSramana 2013 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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