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तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवन चरित-साहित्य, कला एवं ... : 3 १४५३) में लिखी गयी है। संस्कृत भाषा में लिखित इस पाण्डुलिपि में गुजरात शैली के १० लघुचित्र भी है। इसमें शान्तिनाथ के जीवन की विविध घटनाओं के साथ ही शान्तिनाथ का पूर्वभव में महाराज मेघरथ के रूप में भी विस्तार से वर्णन मिलता है। वर्ष २०१३ में इस पाण्डुलिपि को युनेस्को ने वैश्विक सम्पत्ति भी घोषित किया है। उपुर्यक्त ग्रन्थों में सामान्यतया शान्तिनाथ के पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य प्राप्ति एवं निर्वाण) का उल्लेख हुआ है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (त्रि० श० पु०च०) (पंचम पर्व, पंचम सर्ग) में शान्तिनाथ की माता द्वारा १४ शुभ स्वप्न देखने (श्लोक २५-४१), मृग लांछन युक्त शिशु शान्ति के जन्म और चातुर्दिक शान्ति की व्याप्ति (श्लोक ५०-५१), इन्द्र द्वारा शिशु के जन्म-अभिषेक (श्लोक ७२-८४) तथा शान्तिनाथ के विवाह एवं सिंहासनारूढ़ होने (श्लोक ११०-११३), युद्ध-विजय द्वारा चक्रवर्ती बनने (श्लोक १७३-२६६), तीर्थ स्थापना एवं समय पर राज्य छोड़कर प्रस्थान एवं दीक्षा ग्रहण करने (श्लोक २७२-२९०), कैवल्य-ज्ञान की प्राप्ति (श्लोक २९१-२९३) और उसके पश्चात् इन्द्र द्वारा प्रथम देशना के निमित्त शान्तिनाथ के समवसरण की रचना (श्लोक २९४-३०५) से सम्बन्धित कथा का विस्तृत उल्लेख है। शान्तिनाथ के जीवन से सम्बन्धित दृश्यों का उत्कीर्णन हमें कुम्भारिया (शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिर) तथा माउण्ट आबू (विमल वसही) के
जैन मन्दिरों पर प्राप्त होता है। इन दृश्यों में कहीं भी मृगलांछन नहीं प्रदर्शित है। दृश्यों के पहचान की अनुपस्थिति में शान्तिनाथ के पूर्वभव से सम्बन्धित महाराज मेघरथ की कथा का विशेष महत्त्व है क्योंकि दो उदाहरणों (शान्तिनाथ एवं विमल वसही मन्दिर) में शान्तिनाथ के जीवन-दृश्यों की पहचान का मूल आधार यही कथा है। महाराज मेघरथ की कथा का विशद् वर्णन त्रिश० पु०च० (पंचम पर्व, चतुर्थ सर्ग, श्लोक २५३-३२२) में हुआ है। कथा के अनुसार दसवें पूर्व भव में शान्तिनाथ मेघरथ चक्रवर्ती सम्राट थे, जो अहिंसा धर्म के परम अनुयायी थे। इस पर सुरूप नाम के देवता ने इसकी सत्यता