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________________ जैन दार्शनिक साहित्य : 31 न्यायालंकार-टीका (प्रमाण-परिभाषा, धर्मसूरि), विजयदर्शनसूरि अथवा दर्शनविजयसूरि अथवा दर्शनविजय (१९१८ई.) लिखित महार्णवतारिका (सन्मतितर्क), स्याद्वदबिन्दु, गूढार्थदीपिका (तत्त्वार्थसूत्र), बुद्धिसागरसूरि (१९२४ई.) लिखित आत्मदर्शनगीता, स्वोपज्ञ वृत्ति सहित आत्मप्रदीप, आत्मप्रकाश, भावार्थविवेचन (ईशोपनिषद्), लब्धिसूरि (१९२५ई.) लिखित स्वोपज्ञ न्यायप्रकाश सहित तत्त्वन्यायविभाकर, नेमिसूरि (१९४०ई.) का न्यायसिन्धु, लावण्यसूरि (१९४६ई.) लिखित तत्त्वाबोधिनीटीका (अनेकान्तव्यवस्थाप्रकरण-यशोविजय), वृत्ति प्रमोद (नयरहस्य-यशोविजय),वृत्ति प्रमोद (नयोपदेशतरंगिणी-यशोविजय), बालबोधिनीविवृत्ति (नय-प्रदीप-यशोविजय), डॉ. हीरालाल जैन लिखित वृत्ति (परीक्षामुख-माणिक्यनन्दि), मुनिचन्द्रसूरि (१९६९ई.) लिखित वृत्ति (बन्धशतक-शिवशर्मसूरि), उदयचन्द्र (१९७०ई.) लिखित तत्त्वदीपिका (आप्तमीमांसा), पं० सुखलाल संघवी (१९७६ई.) लिखित विवेचन (तत्त्वार्थसूत्र)। इस प्रकार प्रस्तुत लेख में दार्शनिकों की कृतियों का शताब्दी के क्रम से विवरण दिया गया है। सन्दर्भ : पाटर, कार्ल, इन्साइक्लोपीडिया आव इण्डियन फिलासफी- खण्ड १, दो भाग, मोतीलाल बनारसीदास, नई दिल्ली, तृ.सं. १९९५। न्यू कैटलागस कैटलागरम (१३ भाग), मद्रास विश्व वि., चेन्नई। वेलणकर, एच. डी, जिनरलकोश, मद्रास वि.वि., चेन्नई १९४४। ہم سب ****
SR No.525084
Book TitleSramana 2013 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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