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________________ जैनदर्शन में संशय का स्वरूप प्रो. वीरसागर जैन [ज्ञान के अनेक रूप होते हैं- जिज्ञासा, प्रश्न, संशय आदि। जैन परम्परा में संशय के समानार्थक शब्द -विपर्यय, अध्यवसाय, विभ्रम, मोह, अव्युत्पत्ति और समारोप शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसे ज्ञानात्मक और श्रद्धानात्मक दो प्रकार का माना गया है। श्रद्धानात्मक संशय वस्तुतः मिथ्यादर्शन है और पाँच प्रकार का है। सभी दर्शनों में संशय का सूक्ष्म विवेचन हुआ है। तत्त्वोपप्लववादी संशय का अस्तित्व नहीं मानते। आचार्य प्रभाचन्द्र विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड के आधार पर उनके इस मत का निराकरण इस लेख का प्रमुख प्रतिपाद्य है। जैनाचार्यों द्वारा दिये गये संशय के लक्षण आदि का भी इस लेख में विवेचन है।] - सम्पादक संशय दर्शनशास्त्र का एक प्रमुख विषय है। भारतीय एवं पाश्चात्य- सभी दर्शनों में संशय के सम्बन्ध में सूक्ष्म चिन्तन हुआ है। यहाँ संशय के सम्बन्ध में जैनदर्शन की अवधारणा को प्रस्तुत करने का संक्षिप्त प्रयास किया गया है। संशय के सम्बन्ध में जैनाचार्यों ने सर्वप्रथम तो उन तत्त्वोपप्लववादियों का निराकरण किया है जो संशय की सत्ता ही नहीं मानते, उसका सर्वथा उच्छेद करते हैं। इस प्रकरण का सुन्दर एवं विस्तृत विवेचन आचार्य प्रभाचन्द्र के 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' नामक सुप्रसिद्ध न्याय-ग्रन्थ में उपलब्ध होता है जिसका सारांश संक्षेप में इस प्रकार है"पूर्वपक्ष-संशयादिज्ञान कोई है ही नहीं, फिर आप जैन 'व्यवसायात्मक विशेषण द्वारा किसका खण्डन करेंगे? आप यह बताइये कि संशय ज्ञान में क्या झलकता हैधर्म या धर्मी? यदि धर्मी झलकता है तो वह सत्य है या असत्य? यदि सत्य है तो उस सत्य धर्मी को ग्रहण करने वाले ज्ञान में संशयपना कैसे हुआ? उसने तो सत्य वस्तु को जाना है, जैसे कि हाथ में रखी हुई वस्तु का ज्ञान सत्य होता है। यदि उस धर्मी को असत्य मानो तो असत् जानने वाले केशोण्डुक ज्ञान की तरह संशय भ्रांतिरूप हुआ? यदि दूसरा पक्ष माना जाय कि संशयज्ञान में धर्म झलकता है, तब प्रश्न होता है कि वह धर्म क्या पुरुषत्वरूप है अथवा स्थाणुत्वरूप है अथवा उभयरूप है? यदि स्थाणुत्वरूप है तो पुनः प्रश्न उठेगा कि सत् है या असत् दोनों में पूर्वोक्त दोष आयेंगे। पुरुषत्व धर्म में तथा उभयरूप धर्म में भी वही दोष आते हैं? अर्थात् दोनों में पूर्वोक्त दोष आयेंगे। पुरुषत्व धर्म में तथा उभयरूप धर्म में भी वही दोष आते
SR No.525084
Book TitleSramana 2013 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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