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________________ 10 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 राज्यगत समृद्धि, द्वारिका का स्वरूप तथा उनके परिवार का विस्तृत उल्लेख हुआ है। इसमें कृष्ण वासुदेव की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन हुआ है। इस सूत्र के आठ वर्गों में से प्रारम्भिक पाँच वर्गों का विवेचन कृष्ण के इर्द-गिर्द ही घूमता हुआ परिलक्षित होता है। इसमें द्वारिका नगरी का वैभव, कृष्ण की धर्मश्रद्धा, कृष्ण का समृद्ध अन्तःपुर तथा द्वारिका का विनाश, कृष्ण का देहोत्सर्ग आदि विवेचन विस्तार पूर्वक किया गया है। इसके प्रथम वर्ग के प्रथम अध्याय में द्वारिका का वैभव एवं गौतम कुमार का भव्य दीक्षोत्सव वर्णित है। तृतीय वर्ग के अष्टम अध्याय में कृष्ण के लघु भ्राता गजसुकुमार की मार्मिक कथा विवेचित है तथा पंचम वर्ग में द्वारिका के विनाश एवं कृष्ण के देहोत्सर्ग का वर्णन प्राप्त होता है । इस आगम में कृष्ण वासुदेव की विभिन्न विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं, जैसे- ( १ ) भावी तीर्थंकर, (२) जिज्ञासु स्वरूप, (३) करुणा-पुरुष, (४) सच्चे हितैषी, (५) मातृभक्त, (६) न्यायपालक, (७) कषायविजेता, (८) धर्म प्रभावक इत्यादि। इनका क्रमबद्ध विवरण निम्नोक्त है (१) भावी तीर्थंकर - कृष्ण वासुदेव के जीवन का सर्वोत्कृष्ट वैशिष्ट्य है उनको भावी तीर्थंकर के रूप में स्वीकार करना । बाईसवें तीर्थंकर अर्हत् अरिष्टनेमि ने स्वयं अपने मुखारविंद से कृष्ण को भावी तीर्थंकर कहा है । इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि। तत्थ तुमं..... परिनिव्वाहिसि सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि३४ अर्थात् इसी जम्बूद्वीप के भारत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी में पुंड्र जनपद के शतद्वार नगर में बारहवें अमम नामक अर्हत् अर्थात् तीर्थंकर बनोगे। वहाँ तुम सभी कर्मों का क्षय करके मुक्तिलाभ करोगे। किसी भी व्यक्ति के लिए तीर्थंकर पद प्राप्त करना जीवन के सर्वोच्च सम्मान की बात होती है। तीर्थंकर पद उच्चकोटि की साधना का परिणाम है । ३५ अतएव अनुमान किया जा सकता है कि कृष्ण का जीवन कितना साधनामय रहा होगा। (२) जिज्ञासु व्यक्तित्व - कृष्ण वासुदेव सत्य एवं अध्यात्म के प्रति सदैव जिज्ञासु बने रहे। अर्हत् अरिष्टनेमिनाथ का नगरी में आगमन होने पर वे अत्यन्त प्रसन्न होते और सम्पूर्ण राजपरिवार एवं नागरिकों को लेकर भगवान् के चरणों में धर्मकथा श्रवण हेतु जाया करते थे। इसी क्रम में वे एक बार भगवान् से पूछते हैं ३७- भंते! क्या इस द्वारिका नगरी का समूल विनाश होगा? हाँ कृष्ण, इस जगत् में कोई भी पर्याय शाश्वत नहीं है अतएव सुरा, अग्नि और द्वैपायन ऋषि के निमित्त से द्वारिका का नाश होगा | ३
SR No.525084
Book TitleSramana 2013 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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