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________________ जिज्ञासा और समाधान : 79 ऐसा उपवास न कर सकने पर एकाशन (दिन में १ बार भोजन लेना) या अवमौदर्य (भूख से कम खाना) या वृत्तिपरिसंख्यान (नियम विशेष की आकड़ी लेकर भोजन लेना) या रसपरित्याग (खट्टा-मीठा आदि कुछ रसों का त्याग करना, रूखा-सूखा उबला भोजन करना) करने का विधान है। इन सभी प्रकारों में भूख से कम खाना (कम से कम १/४ भाग पेट का खाली रखना) आवश्यक है। 'ऊनोदर्य' उपवास से भी कठिन है जिसकी चर्चा अन्य प्रसंग में करेंगे। उपवास को 'प्रोषधोपवास' भी कहा गया है जिसमें प्रथम दिन १बार भोजन किया जाता है। प्रोषध का अर्थ पर्व (अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व।) भी किया जाता है। अर्थात् उन तिथियों में उपवास करना प्रोषधोपवास है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस उपवास के महत्त्व को समझा था तथा प्रयोग भी किया था। यदि उपवास को सात्विक विधि से किया जाता है तो शरीर की बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। आयुर्वेद में भी इसका महत्त्व प्रतिपादित है। एलोपेथी में भी कुछ परिस्थितियों में अन्न, जल-ग्रहण का निषेध किया जाता है। दिगम्बर जैन साधु तो नियम से बारह महीना एकाशना करते हैं और बीच-बीच में पूर्ण सात्विक उपवास भी करते हैं, इसीलिए बीमारियों से बचे रहते हैं। आज जैन समाज में कई ऐसे गृहस्थ भी हैं जो १-१ मास का उपवास करते हैं। पर्युषण (दशलक्षण) पर्व पर तो बहुत से साधक १दिन, ५दिन या १० दिनों का लगातार उपवास रखते हैं। उपवास से हमारा कोलोस्ट्रोल कम होता है। इसलिए स्थूल शरीर वालों को कम खाने की हिदायत दी जाती है। नेचुरोपैथी में तो उपवास आदि क्रियाओं के माध्यम से ही शरीर के विकारों का शोधन करके व्यक्ति को निरोग किया जाता है। उपवास का सही फल तब नहीं मिलता है जब व्यक्ति पहले दिन ढूंस-ठूस कर खा लेता है, उपवास के दिन सात्विक विचार नहीं रखता है, सांसारिक कार्यों को करता रहता है। उपवास के दूसरे-तीसरे दिन विधिपूर्वक (संयम के साथ) आहारादि लेता है क्योंकि आगे भी नियमों का पालन आवश्यक है। उपवास यदि विधिवत् तथा अनुभवी गुरु की देखरेख में नहीं किया जायेगा तो लाभ के स्थान पर हानि भी संभव है क्योंकि उपवास के बाद गरिष्ठ और अतिभोजन से आंतें चिपक सकती हैं। किसे करना चाहिए और कब करना चाहिए यह भी जानना चाहिए। इस तरह सही उपवास वही है जिसमें व्यक्ति जितेन्द्रिय विषय भोगों तथा लोभादि कषायों से विरक्त) होता है। जितेन्द्रिय वीतरागी व्यक्ति भोजन करते हुए भी उपवासी
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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