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________________ 30 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013 गुप्त के सामन्त रुद्रट, और कदम्बों के सामन्तं भानुशक्ति को अपने ही राज्य के कुछ ग्रामों की मालगुजारी दान करते समय अपने सम्राटों की अनुमति लेनी पड़ती थी।" राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय का सामन्त बुधवर्ष ने भी एक ग्राम दान करने के लिए अपने सम्राट से आज्ञा माँगी थी। राष्ट्रकूट नृपति ध्रुव के सामन्त शंकरगण ने भी ग्राम दान की आज्ञा माँगी थी।३१ इसी प्रकार परमार नरेश जयवर्मा के आदेश से उसके सामन्त गंगदेव ने भूमि दान की थी।३२ सामन्त नृपति युद्ध-काल में शत्रु पर विजय पाने की लालसा से अपने सम्राटों को सैन्यबल की सहायता भी करते थे।३३ अन्य साक्ष्यों से भी पता चलता है कि सामन्त लोग अपने सम्राटों को सैनिक मदद करते थे।३४ दक्षिण कर्नाटक का नरसिंह चालुक्य (९१५ ई.) अपने सम्राट की ओर से प्रतिहार सम्राट महीपाल के विरुद्ध युक्तप्रांत में जाकर लड़ा था।३५ . कभी-कभी सामन्त-नृपति स्वतंत्र शासक बनने के लिए अपने स्वामी सम्राट के विरुद्ध विद्रोह भी कर देते थे जिसका दमन करने के लिए स्वामी-नृपति सैन्य शक्ति का सहारा लेते थे।६ कभी-कभी उनसे विजेता की अश्वशाला, हस्तिशाला आदि में दंड स्वरूप झाडू लगवाई जाती थी। केन्द्रीय सत्ता कमजोर पड़ने पर सामन्त-नृपति स्वतंत्र भी हो जाते थे। यथा गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की अवनति पर उसके अनेक सामन्तों ने ‘महाराजाधिराज परमेश्वर' आदि उपाधियाँ धारण कर ली थी।३८ समराइच्चकहा में महासामन्तों का भी उल्लेख है जो स्वतंत्र सम्राटों के समान ही वैभव वाले अनेक सामन्तों के अधिपति तथा सम्राट के अत्यन्त विश्वसनीय व्यक्ति होते थे।३९ महासामन्तों के स्वतंत्र राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध भी होते थे। उनके अधिकार में उनकी निजी सेना, दुर्ग तथा कोष आदि होते थे। अत: वह स्वतंत्र सम्राट का निकटस्थ, विश्वसनीय और लगभग उन्हीं की तरह सम्पन्न समझा जाता था। हर्ष के दरबार में अनेक महासामन्त और राजा उपस्थित थे, इनकी तीन श्रेणियाँ थी-प्रथम श्रेणी में वे शत्रु महासामन्त आते थे जो जीत लिए गये थे। दूसरी श्रेणी में वे राजा आते थे जो सम्राट के प्रताप से अनुगत होकर वहाँ आये थे। तीसरी श्रेणी के वे नृपति थे जो सम्राट के अनुरागवश आकृष्ट हुए थे।४२ अपराजितपृच्छा ग्रंथ के अनुसार लघु सामन्त की आय ५ सहस्र, सामन्त की आय १० सहस्र, महासामन्त अथवा सामन्त मुख्य की आय २० सहस्र कार्षापण होनी चाहिए। अपराजितपृच्छा में यह भी उल्लिखित है कि महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण करने वाले सम्राट के दरबार में चार मण्डलेश, बारह माण्डलिक, सोलह
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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