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________________ 28 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-गार्च 2013 में विजित जागीरदारों को सामन्त के रूप में मान्यता प्रदान की गयी थी। कौटिल्य ने पड़ोसी जागीरदारों की स्वतन्त्र सत्ता का भी उल्लेख किया है। पाँचवीं शती में सामन्त शब्द दक्षिण भारत में भूस्वामी का बोधक बन गया था।१२ पाँचवीं शती के अन्तिम भाग में दक्षिण तथा पश्चिमी भारत के दानपत्रों में सामन्त शब्द का प्रयोग जागीरदार (भूस्वामी) के अर्थ में हुआ है।१३ सामन्त, महासामन्त, अनुरक्तसामन्त, आप्तसामन्त, प्रधानसामन्त, प्रतिसामन्त तथा करदीकृतमहासामन्त आदि शब्दों का प्रयोग कर बाण ने हर्षचरित में सामन्तों का वर्गीकरण किया है। ये सभी सामन्त अपने-अपने स्वामी के सम्बन्धों के कारण पृथक्-पृथक् थे।४ सामन्त वर्ग के व्यक्तियों का उद्देश्य आमोद-प्रमोद पूर्वक जीवन यापन करना था। शासन के साथ वे आराम और विलासिता सम्बन्धी सामग्रियों का पूर्ण उपभोग करते थे। सामन्त, श्रेष्ठि और सम्राट ये तीनों वर्ग नागरिक सभ्यता के प्रतिनिधि थे। नागरिक जीवन आर्थिक समृद्धि का जीवन है। विलास और आराम दोनों को ही इस जीवन में स्थान प्राप्त है। कृषक एवं सामान्य वर्ग के व्यक्ति, ग्राम्य सभ्यता के प्रतीक हैं। यद्यपि ग्रामों का आर्थिक स्तर आज से कहीं उन्नत था, तो भी नागरिक जीवन की अपेक्षा ग्रामीण जीवन वैभवहीन और असमृद्ध था। नागरिक सभ्यता की दृष्टि से जीवन के दसर५ प्रधान भोग माने गये हैं- (१) रत्न (२) देवियाँ (३) नगर (४) शय्या (५) आसन (६) सेना (७) नाट्यशाला (८) वर्तन (९) भोजन और (१०) वाहन। वैभव और ऐश्वर्य के प्राप्त होने पर ही स्वर्ण, रजत के पात्रों में सुस्वादु और पुष्टिकर भोजन ग्रहण करने की कामना जागृत होती है। उत्तमशय्या,आसन और वाहन भी वैभव सम्पन्न व्यक्ति प्राप्त करता है। नगर में निवास करने वाले व्यक्ति प्रबुद्ध और सुरुचि सम्पन्न होते हैं। आर्थिक समृद्धि के साथ उक्त दस प्रकार के भोगों का सम्बन्ध है। अर्थशास्त्र में तीन प्रकार के उपभोगों का वर्णन आता है- तात्कालिक उपभोग, उत्पादक उपभोग और स्थगित उपभोग। तात्कालिक उपभोग वह है जिससे वस्तु की उपयोगिता तत्काल समाप्त होकर आवश्यकता की पूर्ति उसी क्षण हो जाये। उक्त दस उपभोग के साधनों में भोजन, वाहन एवं रमणियाँ तात्कालिक उपभोग के साधन हैं। उत्पादक उपभोग का तात्पर्य किसी वस्तु के उत्पादन कार्य में प्रयोग से है। यथा, बीज, उद्योगशाला के यन्त्र आदि। स्थगित उपभोग का अर्थ है बचाकर भविष्य में उपभोग के लिए रखना, यथा-रत्न, अन्नसञ्चय एवं विभूति आदि। .
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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