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________________ 20 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी - मार्च 2013 जेरहट शाखा का अत्यधिक प्रभाव था। यहां कुछ भट्टारकों ने अपना उपपीठ भी बना रखा था। यह गुहा मन्दिरों का समूह है । कन्दराओं के कारण इसे कन्दराजी कहा जाने लगा जो बाद में खन्दारगिरि हो गया। पहाड़ के नीचे तलहटी में भट्टारकों की छतरी और चबूतरों के पास एक पाषाणशिला में क्षेत्रपाल उकेरे गये हैं। उसके सामने सड़क के दूसरी ओर एक मानस्तम्भ बना है जिसमें चतुर्मुखी तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। इसके निकट ही धर्मशाला, कुआं तथा पूजनादि के लिये मण्डप बना हुआ है जो यह द्योतित करता है कि यहां तीर्थयात्री भारी संख्या में आते रहे होंगे। यहां दो गुफायें क्रमशः १३वीं एवं १६वीं शताब्दी की हैं किन्तु सब मिलाकर ६ गुफायें हैं। ११. गुरीलागिरि - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गुरीलागिरि ललितपुर चन्देरी मार्ग पर ललितपुर से ३० किमी. की दूरी पर अवस्थित है। यहां भी सेठ पाडाशाह द्वारा निर्मित मन्दिर में भगवान शान्तिनाथ की प्रतिमा है। इस क्षेत्र के अतिशयों में जैन और अजैन दोनों की श्रद्धा है। यहां शान्तिनाथ मन्दिर के निकट दो स्थान उल्लेखनीय हैंएक सिद्धबाबा दूसरा पाडाशाह घाट । यहां बाद में १०-१२ मन्दिर और बने । एक चौवीसी मन्दिर में दो पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियां ४८ दलवाले कमल पर विराजमान हैं जिनके सिर कटे हुए हैं। भग्न ६०० मूर्तियां मन्दिर के परकोटे की दीवारों से टिकाकर रखी हैं। १२. बूढ़ी चन्देरी- बूढ़ी चन्देरी वर्तमान चन्देरी से उत्तर और उत्तर-पश्चिम की ओर १४ किमी. दूरी पर स्थित है । शताब्दियों से यहां मन्दिरों के भग्नावशेष पड़े हैं जो १५वीं शताब्दी में हुए हिन्दू शासकों पर मुस्लिम शासकों की बर्बरता का प्रमाण हैं। इस नगर का उल्लेख फारसी इतिहासकार फरिश्ता, इब्नबतूता आदि ने किया है।" सन् १३३५ के आसपास तक यह नगर सम्पन्न नगर था जिसकी स्थापना चन्देल राजाओं ने की थी। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां जैन शिल्प और स्थापत्य का उल्लेखनीय वैभव बिखरा पड़ा है। संवत् २००१ में जैन समाज ने इसका जीर्णोद्धार किया और सैकड़ों मूर्तियां जमीन खोदकर या जंगलों से प्राप्त की गयीं। यहां की मूर्तियों की विशेषता है कि वे अलंकृत हैं । प्राप्त मूर्तियों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में यह तीर्थ रहा होगा किन्तु अब यहां कोई तीर्थ नहीं है । १३. आमनचार- यह चन्देरी से २९ कि.मी. पर अवस्थित है। यहां हर जगह जैन मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं जो यहां जैन तीर्थ का सूचक है। गांव के एक मन्दिर में प्राचीन काल का एक सहस्रकूट चैत्यालय है । यह शिल्प सौष्ठव का अद्भुत नमूना है। मूर्तियां ११वीं - १२वीं शताब्दी की प्रतीत होती हैं।
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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