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________________ 18 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2013 ४. सोनागिरि- इसे स्वर्णगिरि तथा श्रमणगिरि भी कहते हैं। यह परम पावन सिद्ध क्षेत्र है। प्राकृत निर्वाणकाण्ड के अनुसार सोनागिरि शिखर से नंग-अनंग कुमार कुल साढ़े पांच करोड़ मुनियों के साथ मोक्ष पधारे। इस गिरि पर ७७ जिनालय, १३ छतरियां, ५ क्षेत्रपाल, तथा तलहटी में कुल १७ जिनालय हैं जिनमें भगवान आदिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, ऋषभदेव, चन्द्रप्रभ एवं महावीर के मन्दिर हैं। यहां के मन्दिर समूह में सबसे प्राचीन मूर्ति वि०सं१२३३ की है। सिद्धक्षेत्र सोनागिरि ५. पनिहार-बरई- ग्वालियर से आगरा-शिवपुर रोड पर ३२ कि.मी. की दूरी पर दाईं ओर बरई गांव तथा मुख्य सड़क से बाईं ओर पनिहार है। पनिहार का लाल पाषाण द्वारा निर्मित चौवीसी मन्दिर विभिन्न तीर्थंकरों की कुल १८ मूर्तियों वाला है। चरण चौकी पर उत्कीर्ण चिन्हों को देखने पर ऐसा नहीं लगता कि ये मूर्तियां तीर्थंकरों की हैं। इन मूर्तियों में अद्भुत द्वन्द्व के दर्शन होते हैं। इनकी प्रतिष्ठा संवत् १४२९ में हुई। इन मूर्तियों पर चन्देल कला का प्रभाव परिलक्षित होता है। बरई में पनिहार की मूर्तियों के लगभग १०० वर्षों बाद मन्दिर और मूर्ति का निर्माण हुआ है। यहां ऊंचे टीले पर प्राचीन जैन मन्दिर के भग्नावशेष उपलब्ध हैं जिसमें कुछ गर्भगृह ही बचे हैं। पहले गर्भगृह में १६ फुट ऊंची तीर्थंकर प्रतिमा कायोत्सर्गासन में विराजमान है। दूसरे में खड्गासन में १८ फुट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। इसी प्रकार तीसरे और चौथे गर्भगृह में तीर्थंकर मूर्तियों के अवशेष प्राप्त होते हैं। ६. खनियाधाना और उसके निकटवर्ती क्षेत्र- खनियाधाना बसई स्टेशन से ३७ कि.मी. चन्देरी से ५३ कि.मी. तथा शिवपुरी से १०२ कि.मी. दूर अवस्थित है। यहां की प्राचीन मूर्तियों में दो दिगम्बर जैन मन्दिर की हैं इनमें से एक मन्दिर में वि.सं. ११००, १२१० तथा १३१८ की प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं। इस क्षेत्र को चौरासी दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कहते हैं। खनियाधाना के आसपास मिलनेवाली प्रचुर
SR No.525083
Book TitleSramana 2013 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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