________________
2 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 भाव रखता था। यह अभिलेख तीर्थकर शांतिनाथ के मन्दिर में एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है। यह मंदिर सिरोही क्षेत्र के माउण्ट आबू के निकट दियाणा गांव में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से दियाणा का यह अभिलेख महत्त्वपूर्ण है। यह कृष्णराज परमार का समय निश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत है। कृष्णराज आबू के परमार राजवंश में उत्पलराज का पौत्र एवं अरण्यराज का पुत्र था। दियाणा अभिलेख पर 967 ई0 की तिथि अंकित है। इस अभिलेख में महावीर की मूर्ति की स्थापना हुई है। धरणीवराह 995 ई0 में कृष्णराज का उत्तराधिकारी बना। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार धरणीवराह का सम्बन्ध मूलराज से था। अनेक युद्धों में दोनों साथ-साथ शामिल थे। उसके पश्चात् राजा महिपाल उर्फ देवराज 1002 ई0 में राज सिंहासन पर बैठा। कालान्तर में धन्धुक उसका उत्तराधिकारी हुआ। धन्धुक, चौलुक्य राजा भीम प्रथम द्वारा पराजित हुआ। उसने धारा के राजा भोज के यहाँ शरण लिया। यह उल्लेख एक शिलालेख में हुआ है। कुछ अभिलेख माउण्टआबू के विमल मन्दिर से मिले हैं। अभिलेखों की तिथि 1321 है। अभिलेखों से सूचना मिलती है कि राजा भीम प्रथम के दण्डपति प्राग्वाट विमल ने इस नए क्षेत्र का शासन सूत्र सम्भाला। दण्डपति ने 1031 ई0 में पर्वत के शिखर पर ऋषभदेव के मन्दिर का निर्माण कराया था। अभिलेख यह सूचना देता है कि परमारों को हमेशा के लिए अर्बुद क्षेत्र से निकाला नहीं जा सका। कालान्तर में वे चौलुक्य राजाओं के तालुकेदार के रूप में शासन किए। धारावर्ष चौलुक्य राजा कुमारपाल का तालुकेदार था। उसके मन में श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रति अगाध भक्ति थी। झाड़ोली के महावीर जैन मन्दिर के 1197 ई0 के शिलालेख से ज्ञात होता है कि परमार राजा धारावर्ष की रानी श्रृंगार देवी ने मन्दिर निर्माण हेतु भूमि दान दी थी। कासिन्द्रा के जैन मन्दिर के 1034 ई0 के लेख में भीनमाल की समृद्धि और प्राग्वाट वैश्यों के बाहुल्य का उल्लेख है। सिरोही जिले के आरासन नामक स्थान से एक अभिलेख मिला है। यह अभिलेख मण्डलेश्वर श्री धारावर्ष के शासन काल का है। इसकी तिथि 1219 ई0 निश्चित है। इसमें तीर्थकर सुमतिनाथ की प्रतिमा की स्थापना की सूचना मिलती है। जैन ग्रंथ ज्ञाताधर्मकथा तथा रत्नचूड़कथा का पुनर्लेखन कार्य राजा धारावर्ष के शासन काल में 1164 ई0 में सम्पन्न हुआ।' राजा धारावर्ष का उत्तराधिकारी उसका अनुज प्रहलादन देव हुआ। प्रहलादन देव भी श्वेताम्बर सम्प्रदाय के प्रति उदार था। प्रबंधकोश तथा पुरातनप्रबंधसंग्रह से सूचना मिलती है कि प्रहलादनदेव चौलुक्य राजा कुमारपाल के साथ धार्मिक यात्राएँ किया था।