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________________ 44 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 धर्म और अधर्म द्रव्य को जानने से लाभ गौतम ने पूछा-भगवान्! गति सहायक तत्त्व धर्मास्तिकाय से जीवों को क्या लाभ होता है? भगवान् ने कहा- गौतम ! यदि गति का सहारा नहीं होता तो कौन आता और कौन जाता ? शब्द की तरंगें कैसे फैलतीं? आँखें कैसी खुलतीं? कौन मनन करता? कौन बोलता? कौन हिलता डुलता ? यह विश्व अचल ही होता । जो चल हैं उन सबका आलम्बन गति सहायक तत्त्व ही है। 37 गौतम ने भगवान् से पूछा- स्थिति सहायक तत्त्व अधर्मास्तिकाय से जीवों को क्या लाभ होता है? भगवान् ने कहा कि गौतम ! स्थिति का सहारा नहीं होता तो खड़ा कौन रहता ? कौन बैठता ? कौन मन को एकाग्र करता ? मौन कौन रहता ? कौन निष्पन्दन में रहता ? यह विश्व चलायमान ही होता । जो स्थिर है उन सबका आलम्बन स्थिति सहायक तत्त्व अधर्मास्तिकाय ही है | 38 आकाशद्रव्य जैनदर्शन में आकाश को आकाशास्तिकाय भी कहा जाता है । विश्वसंरचना के घटक द्रव्यों के सन्दर्भ में आकाश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आकाश द्रव्य का अस्तित्व अधिकांश दर्शन और विज्ञान निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं। यद्यपि उसके स्वरूप के सम्बन्ध में परस्पर मतभेद हैं पर अस्तित्व के सम्बन्ध में सब एकमत हैं। आकाश का लक्षण अवगाहनत्व है। भगवान् महावीर ने कहा है कि जो सब द्रव्यों को युगपत अवकाश देता है, एवं सर्वद्रव्यों का आलम्बन है वह आकाश है। 39 आचार्य उमास्वामी कहते हैं कि नित्यावस्थितान्यरूपाणि अर्थात् आकाशद्रव्य नित्य, अवस्थित, अरूपी, निष्क्रिय " अखण्ड द्रव्य है और अवगाह देना उसका उपकार है।42 कुन्दकुन्द स्वामी 3 और नेमिचन्द्राचार्य भी कहते हैं कि जो जीव पुद्गलों और समस्त द्रव्यों को अवकाश देता है, वह आकाश है। आकाश के भेद आकाश द्रव्य के मुख्यतः दो भेद हैं- 1. लोकाकाश, 2. अलोकाकाश। आकाश द्रव्य एक अखण्ड ही है परन्तु जीव और पुद्गलों की अपेक्षा से दो भेद स्वीकृत किये हैं। लोकाकाश, अलोकाकाश को परिभाषित करते हुए द्रव्यसंग्रहकार कहते हैं किधम्माऽधम्मा कालो पुग्गलजीवाय संति जावदिये। आयासे सो लोगो तत्तो परदो अलोगुत्तो ॥ 5 - अर्थात् जिसमें धर्म-अधर्म आदि द्रव्य निवास करते हैं वह लोकाकाश है एवं लोकाकाश के बाहर अनन्त आकाश को अलोकाकाश कहते हैं।
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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