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________________ 24 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 तथा चौड़ाई ऊँचाई का 10वां भाग प्रमाण है। इन्द्र के निवास स्थल अमरावतीपुर के मध्य में इन्द्र विराजमान रहता है तथा उसकी ईशान दिशा में सुधर्मा सभा है जो 100 योजन लम्बी तथा 50 योजन चौड़ी है तथा 75 योजन ऊँची है।24 पूज्य-अपूज्य जिनबिम्ब का फल पूजन करने के पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्नान करें, पश्चिम दिशा की ओर मुख करके दातून करें, उत्तर दिशा की ओर मुख करके श्वेत वस्त्र धारण करें और जिनेन्द्रदेव की पूजा उत्तर दिशा की ओर मुख होकर करें और यदि जिन प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा की ओर हो तो पूजा उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें और यदि प्रतिमा का मुख उत्तर दिशा की ओर हो तो पूजा पूर्व मुख होकर करें। यदि श्रावक घर में चैत्यालय बनवाना चाहे तो घर में प्रवेश करते हुए शल्य रहित वामभाग में डेढ़ हाथ ऊँची भूमि पर देवता का स्थान बनावे। यदि गृहस्थ नीची भूमि पर देवता का स्थान बनाएगा तो वह अवश्य ही संतान के साथ निचली से निचली अवस्था को प्राप्त होता जाएगा। घर के चैत्यालय में ग्यारह अंगुल प्रमाण वाला जिनबिम्ब सर्व मनोवांछित अर्थ का साधक होता है, अतएव इस प्रमाण से अधिक ऊँचा जिन बिम्ब नहीं बनाना चाहिए। एक अंगुल प्रमाण जिनबिम्ब श्रेष्ठ होता है, दो अंगुल प्रमाण का जिनबिम्ब धन-नाशक होता है। तीन अंगुल के जिनबिम्ब बनवाने पर धन-धान्य एवं सन्तान आदि की वृद्धि होती है और चार अंगुल के जिनबिम्ब होने पर पीड़ा होती है। पाँच अंगुल के जिनबिम्ब होने पर घर की वृद्धि होती है, छः अंगुल जिनबिम्ब होने पर घर में उद्वेग होता है। सात अंगुल के जिनबिम्ब होने पर गायों की वृद्धि होती है और आठ अंगुल के जिनबिम्ब होने पर धन्य-धान्यादि की हानि होती है। नव अंगुल के जिनबिम्ब होने पर पुत्रों की वृद्धि होती है और दस अंगुल के जिनबिम्ब होने पर धन का नाश हो जाता है तथा ग्यारह अंगुल की प्रतिमा सब इच्छित सुखों को देने वाली होती है। इस प्रकार एक अंगुल प्रमाण जिनबिम्ब से लेकर ग्यारह अंगुल तक के जिनबिम्ब को घर में स्थापना करने का शुभाशुभ फल कंहा गया है। अतः गृहस्थ को घर में अंगुल प्रमाण वाला जिनबिम्ब पूजना चाहिए। इससे अधिक प्रमाण वाला जिनबिम्ब ऊँचे शिखर वाले जिनमन्दिर में स्थापना करके पूजे। घर के चैत्यालय में जिनप्रतिमा काष्ठ, लेप, पाषाण, सुवर्ण, चाँदी, और लोहे की बनवाये। ग्यारह अंगुल से अधिक प्रमाणवाली प्रतिमा आठ प्रतिहार्य आदि परिवार से संयुक्त ही बनवाना चाहिए तथा आज के समय में काष्ठ, लेप और लोहे की प्रतिमा नही बनवाना चाहिए क्योंकि इनकी बनवायी
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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