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________________ लोकानुप्रेक्षा में वास्तुविद्या : 21 जिनप्रतिमाएँ हैं । अकृत्रिम चैत्यालयों के द्वार के विषय में आचार्य नेमिचन्द्र ने त्रिलोकसार मे कहा है आयाम दलं वासं, उभय दलं जिणधाराण मुच्चत्तं । दारुदय दलं वासं, आणिद्वाराणि तस्सद्धं ॥ अर्थात् उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य के भेद से अकृत्रिम जिन चैत्यालय भी तीन प्रकार के होते हैं। इन तीनों प्रकार के जिनालयों का आयाम क्रमशः 100 योजन, 50 योजन और 25 योजन प्रमाण है। इन्हीं जिनालयों का व्यास आयाम के अर्धभाग प्रमाण अर्थात् 50 योजन 25 योजन तथा 12.5 योजन प्रमाण है तथा इन तीनों की ऊँचाई आयाम और व्यास के योग के अर्धभाग प्रमाण अर्थात् 75 योजन, 37.5 योजन और 18.75 योजन है। द्वारों की ऊँचाई के अर्धभाग प्रमाण द्वारों का व्यास होता है तथा बड़े द्वारों के व्यासादि से छोटे द्वारों का व्यासादि आधा-आधा होता है।" अकृत्रिम चैत्यालय का मुख्य द्वार हमेशा पूर्व मुख ही होता है क्योंकि अकृत्रिम चैत्यालय में जिन चैत्य पूर्वाभिमुख विराजमान रहते हैं। इसी प्रकार प्रतर के असंख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यात् ज्योतिष्क विमान अकृत्रिम स्वर्ण तथा रत्नमय जिन चैत्यालयों से भूषित हैं | चैत्यवृक्ष एवं वास्तु चैत्यवृक्ष जैन दर्शन का अद्वितीय शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ है जिस वृक्ष में चैत्य अर्थात् जिनबिम्ब हो उसे चैत्यवृक्ष कहते हैं। ये चैत्यवृक्ष अधोलोक, मध्यलोक एवं ऊर्ध्वलोक- तीनों लोकों में पाए जाते हैं। अधोलोक में भवनवासी देवों के दस भेदों में दस प्रकार के चैत्यवृक्ष पायें जाते हैं जिनमें अवत्थ, सप्तपर्ण, शाल्मली, जम्बू, वेतस, कदंब, प्रयंगु, सरिस, पलाश, राजद्रुम ये दस चैत्यवृक्ष पाए जाते हैं। ये चैत्यवृक्ष असुर कुमारादि के क्रमशः पाए जाते हैं। कहा हैचेत्ततरुणं मूले पत्तेयं पडिदि सम्हि पंचेव| पलि कठिया पडिमा सुरच्चिया ताणि वंदामि ॥ पडि दि सयं णियसीसे सगसग पडिमा जुदा विराजंति । तुंगा माणत्थंमा रयणमया पडिदिसं पंच ॥ अर्थात् भवनवासी देवों के चैत्यवृक्ष के मूल में प्रत्येक दिशा में पाँच-पाँच प्रतिमा पर्यंक आसन में विराजमान हैं तथा प्रत्येक दिशा में प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक मानस्तम्भ है, उस मानस्तम्भ के प्रत्येक दिशा में सात-सात उत्तम रत्न की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इस प्रकार एक चैत्यवृक्ष के चारों दिशाओं में 20 प्रतिमाएँ और 20 मानस्तम्भ हैं तथा 20 मानस्तम्भ के प्रत्येक दिशा में सात-सात प्रतिमा के कारण एक मानस्तम्भ में 28 प्रतिमाएँ तथा 20 मानस्तम्भ में 560 प्रतिमाएँ होती हैं तथा चैत्यवृक्ष में 20 प्रतिमाएँ मिला देने से 580 प्रतिमाएँ होती हैं। अतः
SR No.525082
Book TitleSramana 2012 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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