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16 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 4 / अक्टूबर-दिसम्बर 2012 4. ज्ञान जड़ को जानने से जड़ रूप नहीं होता तथा अपने अनंत गुणों को जानने
से अनंतगुण रूप नहीं होता। ज्ञान. तो सदाकाल ज्ञानरूप रहता है, ऐसा जानने
से निर्भयता का भाव जाग्रत होता है। उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञानमयी वस्तु तथा ज्ञेयरूप वस्तु दोनों अपने-अपने में अपनी स्वरूप सम्पदा से परिपूर्ण होने के कारण परस्पर एक दूसरे के आधीन नहीं हैं। वे एक दूसरे से किसी प्रकार परतंत्र नहीं हैं। इस प्रकार ज्ञान व ज्ञेयमयी समस्त वस्तुओं को उनकी स्वशक्तियाँ उन्हें पर से निरपेक्ष व स्वभाव से सहज सम्पन्न रखती हैं इस कारण से पर के हस्तक्षेप का कोई विकल्प पैदा होने की गुज़ाइश नहीं रहती। इस प्रकार यह ज्ञान-ज्ञेय मीमांसा वस्तु की अस्तित्वात्मक, क्रियात्मक एवं ज्ञानात्मक स्वतंत्रता की उद्घोषणा करता हुआ अकृत विश्वव्यवस्था में अपनी सम्मति देता हुआ शोभायमान होता है। सन्दर्भ : 1. प्रमेयत्व- जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का विषय है उसे
प्रमेयत्व गुण कहते हैं। (अ)लघु जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, प्रश्न 26, पृष्ठ 6
(ब)द्रव्य स्वभाव प्रकाशक नय चक्र गाथा 12 का विशेषार्थ पृष्ठ 7 2. समयसार कलश- आचार्य अमृतचन्द्र, कलश 62 3. चैतन्य बिहार- जुगलकिशोरजी 'युगल' पृष्ठ 43, अखिल भारतीय जैन युवा ____ फैडरेशन, कोटा (राज.) प्रथम 'संस्करण' 2002 4. समयसार गाथा 116-120 की आत्मख्याति टीका, पृष्ठ 196 5. परीक्षामुख सूत्र- आचार्य माणिक्यनंदी, अध्याय-2, सूत्र-71 6. वही, अध्याय-2, सूत्र-8 7. प्रवचनसार- आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा-23 8. वही, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा 28 की टीका 9. समयसार, गाथा 320 10. चैतन्य बिहार, पृष्ठ. 45 11. जिनेन्द्र अर्चना- पं. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट जयपुर, संस्करण बीसवां, 1999, पृष्ठ. 57 12. समयसार कलश- कलश 200 13. समयसार- गाथा 6, आचार्य अमृतचन्द्र कृत आत्मख्याति टीका 14. चैतन्य बिहार, पृष्ठ. 46 15. निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध-जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप परिणमित न हो परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने से जिसपर कारणपने का आरोप आता है उसे निमित्तकारण कहते हैं। निमित्त की अपेक्षा से जो कार्य हो उसे नैमित्तिक कहा जाता है। निमित्त-नैमित्तिक